जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
'हाँ, भाई।'
'मुझे अब इसमे से निकालिये न? मैं जला जा रहा हूँ।'
'क्यो, क्या पसीना छूट रहा है?'
'मैं तो भीग गया हूँ। अब मुझे निकालिये न, बापूजी !'
मैंने मणिलाल का माथा देखा। माथे पर पसीने की बूंदें दिखाई दी। बुखार कम हो रहा था। मैंने ईश्वर का आभार माना।
'मणिलाल, अब तुम्हारा बुखार चला जायगा। अभी थोड़ा और पसीना नहीं आने दोगे?'
'नहीं बापू ! अब तो मुझे निकाल लीजिये। फिर दुबारा और लपेटना हो तो लपेट दीजियेगा।'
मुझे धीरज आ गया था, इसलिए उसे बातो में उलझा कर कुछ मिनट और निकाल दिये। उसके माथे से पसीने की धाराये बह चली। मैंने चादर खोली, शरीर पोंछा और बाप-बेटे साथ सो गये। दोनों ने गहरी नींद ली।
सवेरे मणिलाल का बुखार हलका हो गया था। दूध और पानी तथा फलो के रस पर वह चालीस दिन रहा। मैं निर्भय हो चुका था। ज्वर हठीला था, पर वश में आ गया था। आज मेरे सब लड़को में मणिलाल का शरीर सबसे अधिक सशक्त हैं।
मणिलाल का नीरोग होना राम की देन हैं, अथवा पानी के उपचार की, अल्पाहार की और सार-संभाल की, इसका निर्णय कौन कर सकता है? सब अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार जैसा चाहे, करें। मैंने तो यह जाना कि ईश्वर ने मेरी लाज रखी, और आज भी मैं यही मानता हूँ।
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