जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
इंडियन ओपीनियन
कुछ और भी दूसरे यूरोपियनो के गाढ़ परिचय की चर्चा करनी रह जाती हैं। पर उससे पहले दो-तीन महत्त्वपूर्ण बातो का उल्लेख करना आवश्यक हैं।
एक परिचय तो यही दे दूँ। मिस डिक के नियुक्त करके ही मैं अपना काम पूरा कर सकूँ ऐसी स्थिति न थी। मि. रीच के बारे में मैं पहले लिख चुका हूँ। उनसें मेरा अच्छा परिचय था ही। वे एक व्यापारी फर्म के संचालक थे। मैंने उन्हें सुझाया कि वहाँ से मुक्त होकर वे मेरे साथ आर्टिकल क्लर्क का काम करे। मेरा सुझाव उन्हें पसंद आया और वे आफिस में दाखिल हो गये। काम का मेरा बोझ हलका हो गया।
इसी अरसे में श्री मदनजीत ने 'इंडियन ओपीनियन' अखबार निकालने का विचार किया। उन्होंने मेरी सलाह और सहायता माँगी। छापाखाना तो वे चला ही रहे थे। अखबार निकालने के विचार से मैं सहमत हुआ। सन् 1904 में इस अखबार को जन्म हुआ। मनसुखलाल नाजर इसके संपादक बने। पर संपादन का सच्चा बोझ तो मुझ पर ही पड़ा। मेरे भाग्य में प्रायः हमेशा दूर से ही अखबार की व्यवस्था संभालने का योग रहा हैं।
मनसुखलाल नाजर संपादक काम न कर सकें, ऐसी कोई बात नहीं थी। उन्होंने देश में कई अखबारों के लिए लेख लिखे थे, पर दक्षिण अफ्रीका के अटपटे प्रश्नों पर मेरे रहते उन्होंने स्वतंत्र लेख लिखने की हिम्मत न थी। उन्हें मेरी विवेक शक्ति पर अत्याधिक विश्वास था। अतएव जिन-जिन विषयों पर कुछ लिखना जरूरी होतो, उन पर लिखकर भेजने का बोझ वे मुझे पर डाल देते थे।
|