जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पहली रात
फीनिक्स में 'इंडियन ओपीनियन' का पहला अंक निकालना सरल सिद्ध न हुआ। यदि मुझे दो सावधानियाँ न सूझी होती तो अंक एक सप्ताह बंद रहता अथवा देर से निकलता। इस संस्था में एंजिन से चलने वाली मशीनें लगाने का मेरा कम ही विटार था। भावना यह थी जहाँ खेती भी हाथ से करनी है वहाँ अखबार भी हाथ से चल सकनेवाले यंत्रों की मदद से निकले तो अच्छा हो। पर इस बार ऐसा प्रतीत हुआ कि यह हो न सकेगा। इसलिए वहाँ ऑइल एंजिन ले गये थे। किन्तु मैंने वेस्ट को सुझाया था कि इस तैल-यंत्र बिगड़ने पर दूसरी कोई भी कामचलाऊ शक्ति हमारे पास हो तो अच्छा रहे। अतएव उन्होंने हाथ से चलाने की व्यवस्था कर ली थी। इसके अलावा, हमारे अखबार का कद दैनिक पत्र के समान था। बड़ी मशीन के बिगडने पर उसे तुरन्त सुधार सकने की सुविधा यहाँ नहीं थी। इससे भी अखबार का काम रुक सकता था। इस कठिनाई से बचने के लिए उसका आकार बदलकर साधारण साप्ताहिक के बराबर कर दिया गया, जिससे अड़चन के समय ट्रेडल पर पैरो की मदद से कुछ पृष्ट छापे जा सके।
शुरु के दिनों में 'इंडियन ओपीनियन' ओपीनियन प्रकाशित होने के दिन की पहली रात को तो सबका थोड़ा बहुत जागरण हो ही जाता था। कागज भाँजने के काम में छोटे बडे सभी लग जाते थे और काम रात को दस बारह बजे पूरा होता था। पहली रात तो ऐसी बीती कि वह कभी भूल नहीं सकती। फर्मा मशीन पर कर दिया गया, पर एंजिन चलने से इनकार करने लगा ! एंजिन को बैठाने और चलाने के लिए एक इंजीनियर बुलाया गया था। उसने और वेस्ट ने बहुत मेंहनत की, पर एंजिन चलता ही न था। सब चिन्तित हो गये। आखिर वेस्ट ने निराश होकर डबडबायी आँखो से मेरे पास आये और बोले, 'अब आज एंजिन चलता नजर नहीं आता और इस सप्ताह हम लोग समय पर अखबार नहीं निकाल सकेंगे।'
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