जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
जाको राखे साइयां
अब जल्दी ही हिन्दुस्तान जाने की अथवा वहाँ जाकर स्थिर होने की आशा मैंने छोड दी थी। मैं तो पत्नी को एक साल का आश्वासन देकर वापस दक्षिण अफ्रीका आया था। सात तो बीत गया, पर मेरे वापस लौटने की संभावना दूर चली गई। अतएव मैंने बच्चो को बुला लेने का निश्चय किया।
बच्चे आये। उनमें मेरा तीसरा लड़का रामदास भी थी। रास्ते में वह स्टीमर के कप्तान से खूँब हिल गया था और कप्तान के साथ खेलते खेलते उसका हाथ टूट गया था। कप्तान ने उसकी सार संभाल की थी। डॉक्टर ने हड्डी बैठा दी थी। जब वह जोहानिस्बर्ग पहुँचा तो उसका हाथ लकड़ी की पट्टियो के बीच बँधा हुआ औऱ रुमाल की गलपट्टी में लटका हुआ था। स्टीमर के डॉक्टर की सलाह थी कि घाव को किसी डॉक्टर से साफ करा कर पट्टी बँधवा ली जाय।
पर मेरा यह समय तो धडल्ले के साथ मिट्टी के प्रयोग करने का था। मेरे जिन मुवक्किलो को मेरी नीमहकीमी पर भरोसा था, उनसे भी मैं मिट्टी और पानी के प्रयोग कराता था। तब रामदास के लिए और क्या होता? रामदास की उमर आठ साल की थी। मैंने उससे पूछा, 'तेरे घाव की मरहम पट्टी मैं स्वयं करूँ तो तू घबरायेगा तो नहीं?'
रामदास हँसा औऱ उसने मुझे प्रयोग करने की अनुमति दी। यद्यपि उस उमर में उसे सारासार का पता नहीं चल सकता था, फिर भी डॉक्टर और नीमहकीम के भेद को तो वह अच्छी तरह जानता था। लेकिन उसे मेरे प्रयोगों की जानकारी थी और मुझ पर विश्वास था, इसलिए वह निर्भय रहा।
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