जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
आश्रम में बीमारी मुश्किल से ही आती थी। कहना चाहिये कि इसमे जलवायु का और अच्छे तथा नियमित आहार का भी बडा हाथ था। शारीरिक शिक्षा के सिलसिले में ही शारीरिक धंधे की शिक्षा का भी मैं उल्लेख कर दूँ। इरादा यह था कि सबको कोई-न-कोई उपयोगी धंधा सिखाया जाय। इसके लिए मि. केलनबैक ट्रेपिस्ट मठ से चप्पल बनाना सीख आये। उनसे मैं सीखा और जो बालक इस धंधे को सीखने के लिए तैयार हुए उन्हें मैंने सिखाया। मि. केलनबैक को बढ़ई काम का थोड़ा अनुभव था और आश्रम में बढ़ई का काम जानने वाला एक साथी था, इसलिए यह काम भी कुछ हद तक बालकों को सिखाया जाता था। रसोई का काम तो लगभग सभी बालक सीख गये थे।
बालकों के लिए ये सारे काम नये थे। इन कामों को सीखने की बात तो उन्होंने स्वप्न में भी सोची न होगी। हिन्दुस्तानी बालक दक्षिण अफ्रीका में जो कुछ भी शिक्षा पाते थे, वह केवल प्राथमिक अक्षर-ज्ञान की ही होती थी। टॉल्सटॉय आश्रम में शुरू से ही रिवाज डाला गया था कि जिस काम को हम शिक्षक न करें, वह बालकों से न कराया जाय, और बालक जिस काम में लगे हो, उसमें उनके साथ उसी काम को करनेवाला एक शिक्षक हमेशा रहे। इसलिए बालकों ने कुछ सीखा, उमंग के साथ सीखा।
चरित्र और अक्षर-ज्ञान के विषय में आगे लिखूँगा।
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