जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मि. केलनबैक ने तुरन्त ही जवाब दिया, 'हाँ, इस मनहूस चीज को जरूर फेंक दो।'
मैंने कहा, 'तो मैं फेंकता हूँ।'
उन्होंने उतनी ही तत्परता से उत्तर दिया, 'मैं सचमुच कहता हूँ, जरूर फेंक दो।'
मैंने दूरबीन फेंक दी। वह कोई सात पौंड की थी। लेकिन उसकी कीमत जितनी दामो में थी उससे अधिक उसके प्रति रहे मि. केलनबैक के मोह में थी। फिर भी उन्होंने इस सम्बन्ध में कभी दुःख का अनुभव नहीं किया। उनके और मेरे बीच ऐसे कई अनुभब होते रहते थे। उनमें से एक यह मैंने बानगी के रूप में यहाँ दिया है।
हम दिनो के आपसी सम्बन्ध से हमे प्रतिदिन नया सीखने को मिलता था, क्योंकि दोनों सत्य का ही अनुकरण करते चलने का प्रयत्न करते थे। सत्य का अनुकरण करने से क्रोध, स्वार्थ, द्वेष इत्यादि सहज ही मिल जाते थे, शान्त न होते तो सत्य मिलता न था। राग-द्वेषादि से भरा मनुष्य सरल चाहे हो ले, वाचिक सत्य का पालन चाहे वह कर ले, किन्तु शुद्ध सत्य तो उसे मिल ही नहीं सका। शुद्ध सत्य की शोध करने का अर्थ है, राग-द्वेषादि द्वन्द्वो से सर्वथा मुक्ति प्राप्त करना।
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