जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मैंने अधिकारी को एक पत्र लिखकर अपना तीव्र असंतोष व्यक्त किया और बताया कि मुझे अधिकार नहीं भोगना है, मुझे तो सेवा करनी है और यह काम सांगोपांग पूरा करना है। मैंने उन्हें यह भी बतलाया कि बोअर-युद्ध में मैंने कोई अधिकार नहीं लिया था, फिर भी कर्नल गेलवे और हमारी टुकड़ी के बीच कभी किसी तकरार की नौबत नहीं आयी थी, और वे अधिकारी मेरी टुकड़ी की इच्छा मेरे द्वारा जानकर ही सारी बाते करते थे। अपने पत्र के साथ मैंने हमारी टुकड़ी द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव की एक नकल भेजी।
अधिकारी पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा। उन्हे तो लगा कि हमारी टुकड़ी ने सभा करके प्रस्ताव पास किया, यही सैनिक नियम का गंभीर भंग था।
इसके बाद मैंने भारत--मंत्री को एक पत्र लिखकर सारी वस्तुस्थिति बतायी और साथ में हमारी सभा का प्रस्ताव भेजा। भारत-मंत्री ने मुझे जवाब में सूचित किया कि दक्षिण अफ्रीका की स्थिति भिन्न थी। यहाँ तो टुकड़ी के बडे अधिकारी को नायब-अधिकारी चुनने का हक है, फिर भी भविष्य में वह अधिकारी आपकी सिफारिशो का ध्यान रखेगी।
इसके बाद तो हमारे बीच बहुत पत्र-व्यवहार हुआ, पर वे सारे कटु अनुभव देकर मैं इस प्रकरण को बढाना नहीं चाहता।
पर इतना कहे बिना तो रहा ही नहीं जा सकता कि ये अनुभव वैसे ही थे जैसे रोज हिन्दुस्तान में होते रहते है। अधिकारी ने धमकी से, युक्ति से, हममे फूट डाली। कुछ लोग शपथ ले चुकने के बाद भी कल अथवा बल के वश हो गये। इतने में नेटली अस्पताल में अनसोची संख्या में घायल सिपाही आ पहुँचे औऱ उनकी सेवा-शुश्रूषा के लिए हमारी समूची टुकड़ी की आवश्यकता आ पड़ी। अधिकारी जिन्हे खीच पाये थे, वे तो नेटली पहुँच गये। पर दूसरे नहीं गये, यह इंडिया आफिस को अच्छा न लगा। मैं तो बिछौने पर पड़ा था। पर टुकडी के लोगों से मिलता रहता था। मि. रॉबर्ट्स से मेरी अच्छी जान-पहचान हो गयी थी। वे मुझसे मिलने आये और बाकी के लोगों को भी भेजने का आग्रह किया। उनका सुझाव था कि वे अलग टुकड़ी के रूप में जाये। नेटली अस्पताल में तो टुकड़ी को वहाँ के मुखिया के अधीन रहना होगा, इसलिए उसकी मानहानि नहीं होगी। सरकार को उनके जाने से संतोष होगा और भारी संख्या में आये हुए घायलो की सेवा-शुश्रूषा होगी। मेरे साथियो को और मुझे यह सलाह पसन्द आयी और बचे हुए विद्यार्थी भी नेटली गये। अकेला मैं ही हाथ मलता हुआ बिछौने पर पड़ा रहा। (सचिन सत्तवन)
|