जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
यह सब करने से तबीयत कुछ सुधरी। बिल्कुल अच्छी तो हुई ही नहीं। कभी-कभी लेडी सिसिलिया रॉबर्ट्स मुझे देखने आती थी। उनसे अच्छी जान-पहचान थी। उनकी मुझे दूध पिलाने की प्रबल इच्छा थी। दूध मैं लेता न था। इसलिए दूध के गुणवाले पदार्थो की खोच शुरू की। उनके किसी मित्र ने उन्हें 'माल्टेड मिल्क' बताया औऱ अनजान में कह दिया कि इसमे दूध का स्पर्श तक नहीं होता, यह तो रासायनिक प्रयोग से तैयार किया हुआ दूध के गुणवाला चूर्ण है। मैं जान चुका था कि लेडी रॉबर्ट्स को मेरी धर्म भावना के प्रति बड़ा आदर था। अतएव मैंने उस चूर्ण को पानी में मिलाकर पिया। मुझे उसमें दूध के समान ही स्वाद आया। मैंने 'पानी पीकर घर पूछने' जैसा काम किया। बोतल पर लगे परचे को पढने से पता चला कि यह तो दूध का ही पदार्थ है। अतएव एक ही बार पीने के बाद उसे छोड देना पड़ा। लेडी रॉबर्टस को खबर भेजी और लिखा कि वे तनिक भी चिन्ता न करे। वे तुरन्त मेरे घर आयी। उन्होंने खेद प्रकच किया। उनके मित्र में बोतल पर चिपका कागज पढा नहीं था। मैंने इस भली बहन को आश्वासन दिया और इस बात के लिए उनसे माफी माँगी कि उनके द्वारा कष्ट पूर्वक प्राप्त की हुई वस्तु का मैं उपयोग न कर सका। मैंने उन्हे यह भी जता दिया कि जो चूर्ण अनजान में ले लिया है उसका मुझे कोई पछतावा नहीं है, न उसके लिए प्रायश्चित की ही आवश्यकता है।
लेडी रॉबर्टस के साथ के जो दूसरे मधुर स्मरण है उन्हें मैं छोड़ देना चाहता हूँ। ऐसे कई मित्रों का मुझे स्मरण है, जिनका महान आश्रय अनेक विपत्तियो और विरोधो में मुझे मिल सका है। श्रद्धालु मनुष्य ऐसे मीठे स्मरणो द्वारा यह अनुभव करता है कि ईश्वर दुःखरूपी कड़वी दवाये देता है तो उसे साथ ही मैंत्री के मीठे अनुपान भी अवश्य ही देता है।
|