जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मुवक्किल साथी बन गये
नेटाल और ट्रान्सवाल की वकालत में यह भेद था कि नेटान में एडवोकेट और एटर्नी का भेद होने पर भी दोनों सब अदालतों में समान रुप से वकालत कर सकते थे, जबकि ट्रान्सवाल में बम्बई जैसा भेद था। वहाँ एडवोकेट मुवक्किल के साथ का सारा व्यवहार एटर्नी के मारफत ही कर सकता हैं। बारिस्टर बनने के बाद आप एडवोकेट अथवा एटर्नी में से किसी एक की सनद ले सकते है और फिर वही धंधा कर सकते हैं। नेटान में मैंने एडवोकेट की सनद ली थी, ट्रान्सवाल में एटर्नी की। एडवोकेट के नाते मैं हिन्दुस्तानियों के सीधे संपर्क मैं नहीं आ सकता था और दक्षिण अफ्रिका में वातावरण ऐसा नहीं था कि गोरे एटर्नी मुझे मुकदमे दे।
यो ट्रान्सवाल में वकालत करते हुए मजिस्ट्रेट के इजलास पर तो मैं बहुत बार जा सकता था। ऐसा करते हुए एक प्रसंग इस प्रकार का आया, जब चलते मुकदमे के दौरान मैंने देखा कि मेरे मुवक्किल में मुझे ठग लिया है। उसका मुकदमा झूठा था। वह कठहरे में खड़ा इस तरह काँप रहा था, मानो अभी गिर पड़ेगा। अतएव मैंने मजिस्ट्रेट को मुवक्किल के विरुद्ध फैसला देने के लिए कहा और मैं बैठ गया। प्रतिपक्ष का वकील आश्चर्य चकित हो गया। मजिस्ट्रेट खुश हुआ। मुवक्किल को मैंने उलाहना दिया। वह जानते था कि मैं झूठे मुकदमें नहीं लेता था। उसने यह बात स्वीकार की और मैं मानता हूँ कि मैंने उसके खिलाफ फैसला माँगा, इसके लिए वह गुस्सा न हुआ। जो भी हो, पर मेरे इस बरताव का कोई बुरा प्रभाव मेरे धंधे पर नहीं पड़ा, और अदालत में मेरा काम सरल हो गया। मैंने यह भी देखा कि सत्य की मेरी इस पूजा से वकील बंधुओं में मेरी प्रतिष्ठा बढ़ गयी थी और विचित्र परिस्थितियों के रहते हुए भी उनमें से कुछ की प्रीति मैं प्राप्त कर सका था।
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