जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
और मुझे वचन दिया कि आपके कथन के विरुद्ध अधिकारियों को कोई आपत्ति नहीं हुई, तो चुंगी रद्द कर दी जायगी। इस मुलाकात के बाद कुछ ही दिनों में चुंगी उठ जाने की खबर मैंने अखबारों में पढ़ी।
मैंने इस जीत को सत्याग्रही नींव माना, क्योंकि वीरमगाम के संबंध में बाते करते हुए बम्बई सरकार के सेक्रेटरी ने मुझ से कहा था कि मैंने इस विषय में बगसरा में जो भाषण किया था, उसकी नकल उनके पास हैं। उन्हें सत्याग्रह का जो उल्लेख किया गया था, उस पर उन्होंने अपनी अप्रसन्नता भी प्रकट की थी। उन्होंने पूछा था, 'क्या आप इसे धमकी नहीं मानते? और इस तरह कोई शक्तिशाली सरकार धमकियों की परवाह करती हैं?'
मैंने जवाब दिया, 'यह धमकी नहीं हैं। यह लोकशिक्षा हैं। लोगों को अपने दुःख दूर करने के सब वास्तविक उपाय बताना मुझ जैसो का धर्म हैं। जो जनता स्वतंत्रता चाहती हैं, उसके पा. अपनी रक्षा का अन्तिम उपाय होना चाहिये। साधारणतः ऐसे उपाय हिंसात्मक होते हैं। पर सत्याग्रह शुद्ध अहिंसक शस्त्र है। उसका उपयोग और उसकी मर्यादा बताना मैं अपना धर्म समझता हूँ। मुझे इस विषय में सन्देह नहीं है कि अंग्रेज सरकार शक्तिशाली हैं। पर इस विषय में भी मुझे कोई सन्देह नहीं हैं कि सत्याग्रह सर्वोपरि शस्त्र हैं।'
चतुर सेक्रेटरी ने अपना सिर हिलाया और कहा, 'ठीक हैं, हम देखेंगे।'
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