लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


सबेरे मुगलसराय स्टेशन आया। मगनलाल ने तीसरे दर्जे में जगह कर ली थी। मुगलसराय में मैं तीसरे दर्जे में गया। टिकट कलेक्टर को मैंने वस्तुस्थिति की जानकारी दी औऱ उससे इस बात का प्रमाण पत्र माँगा कि मैं तीसरे दर्ज में चला आया हूँ। उसने देने से इनकार किया। मैंने अधिक किराया वापस प्राप्त करने के लिए रेलवे के उच्च अधिकारी को पत्र लिखा।

उनकी ओर से इस आश्य का उत्तर मिला, 'प्रमाणपत्र के बिना अतिरिक्त किराया लौटाने का हमारे यहाँ रिवाज नहीं है। पर आपके मामले में हम लौटाये दे रहे है। बर्दवान से मुगलसराय तक का डयोढ़ा किराया वापस नहीं किया जा सकता।'

इसके बाद के तीसरे दर्जे की यात्रा के मेरे अनुभव तो इतने है कि उनकी एक पुस्तक बन जाय। पर उनमें से कुछ की प्रांसगिक चर्चा करने के सिवा इन प्रकरणों में उनका समावेश नहीं हो सकता। शारीरिक असमर्थता के कारण तीसरे दर्जे की मेरी यात्रा बन्द हो गयी। यह बात मुझे सदा खटकी है और आगे भी खटकती रहेगी। तीसरे दर्जे की यात्रा में अधिकारियों की मनमानी से उत्पन्न होने वाली विडम्बना तो रहती ही है। पर तीसरे दर्जे में बैठने वाले कई यात्रियो का उजड्पन, उनकी स्वार्थबुद्धि और उनका अज्ञान भी कुछ कम नहीं होता। दुःख तो यह है कि अकसर यात्री यह जानते ही नहीं कि वे अशिष्टता कर रहे है, अथवा गंदगी फैला रहे है अथवा अपना ही मतलब खोज रहे है। वे जो करते है, वह उन्हे स्वाभाविक मालूम होता है। हम सभ्य और पढ़े लिखे लोगों ने उनकी कभी चिन्ता ही नहीं की।

थके मांदे हम कल्याण जंकशन पहुँचे। नहाने की तैयारी की। मगनलाल और मैंने स्टेशन के नल से पानी लेकर स्नान किया। पत्नी के लिए कुछ तजवीज कर रहा था कि इतने में भारत समाज के भाई कौल ने हमे पहचान लिया। वे भी पूना जा रहे थे। उन्होंने पत्नी को दूसरे दर्जे के स्नानग्रह में स्नान कराने के लिए ले जाने की बात कही। इस सौजन्य को स्वीकार करने में मुझे संकोच हुआ। पत्नी को दूसरे दर्जे के स्नानघर का उपयोग करने का अधिकार नहीं था, इसे मैं जानता था। पर मैंने उसे इस स्नानघर में नहाने देने के अनौचित्य के प्रति आँखे मूँद ली। सत्य के पुजारी को यह भी शोभा नहीं देता। पत्नी का वहाँ जाने का कोई आग्रह नहीं था, पर पति के मोहरूपी सुवर्णपात्र ने सत्य को ढांक लिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book