जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
इस तरह मैं टकराता और धक्कामुक्की की बरदाश्त करता हुआ समय पर कलकत्ते पहुँच गया। कासिम बाजार के महाराज में मुझे अपने यहाँ उतरने का निमंत्रण दे रखा था। कलकत्ते की सभा के अध्यक्ष भी वही थे। कराची की ही तरह कलकत्ते में भी लोगों का उत्साह उमड़ा पडता था। कुछ अंग्रेज भी सभा में उपस्थित थे।
इकतीसवी जुलाई के पहले गिरमिट की प्रथा बन्द होने की सरकारी घोषणा हुई। सन् 1894 में इस प्रथा का विरोध करने वाला पहला प्रार्थना पत्र मैंने तैयार किया था और यह आशा रखी थी कि किसी दिन यह 'अर्ध-गुलामी' अवश्य ही रद्द होगी। 1894 से शुरू किये गये इस प्रयत्न में बहुतो ने सहायता की। पर यह कहे बिना नहीं रहा जाता कि इसके पीछे शुद्ध सत्याग्रह था।
इसका विशेष विवरण और इसमे भाग लेनेवाले पात्रो की जानकारी पाठको को 'दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास' में अधिक मिलेगी।
|