लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


कोई आठ दिन के अन्दर ही जमीन का सौदा तय कर लिया। जमीन पर न तो कोई मकान था, न कोई पेड़। जमीन के हक में नदी का किनारा और एकान्त ये दो बड़ी सिफारिशे थी। हमने तम्बुओ में रहने का निश्चय किया और सोचा कि रसोईघर के लिए टीन का एक कामचलाऊ छप्पर बाँध लेंगे और धीरे धीरे स्थायी मकान बनाना शुरू कर देंगे।

इस समय आश्रम की बस्ती बढ़ गयी थी। लगभग चालीस छोटे-बढे स्त्री-पुरुष थे। सुविधा यह थी कि सब एक ही रसोईघर में खाते थे। योजना का कल्पना मेरी थी। उसे अमली रूप देने का बोझ उठाने वाले तो नियमानुसार स्व. मगललाल गाँधी ही थे।

स्थायी मकान बनने से पहले की कठिनाइयों का पार न था। बारिश का मौसम सामने था। सामान सब चार मील दूर शहर से लाना होता था। इस निर्जन भूमि में साँप आदि हिंसक जीव तो थे ही। ऐसी स्थिति में बालकों की सार सँभाल को खतरा मामूली नहीं था। रिवाज यह था कि सर्पादि को मारा न जाय लेकिन उनके भय से मुक्त तो हममे से कोई न था, आज भी नहीं है।

फीनिक्स, टॉल्सटॉय फार्म और साबरमती आश्रम तीनों जगहों में हिंसक जीवो को न मारने का यथाशक्ति पालन किया गया है। तीनों जगहों में निर्जन जमीने बसानी पड़ी थी। कहना होगा कि तीनों स्थानो में सर्पादि का उपद्रव काफी था। तिस पर भी आज तक एक भी जान खोनी नहीं पड़ी। इसमे मेरे समान श्रद्धालु को तो ईश्वर के हाथ का, उसकी कृपा का ही दर्शन होता है। कोई यह निरर्थक शंका न उठावे कि ईश्वर कभी पक्षपात नहीं करता, मनुष्य के दैनिक कामों में दखल देने के लिए यह बेकार नहीं बैठा है। मैं इस चीज को, इस अनुभव को, दूसरी भाषा में रखना नहीं जानता। ईश्वर की कृति को लौकिक भाषा में प्रकट करते हुए भी मैं जानता हूँ कि उसका 'कार्य' अवर्णनीय है। किन्तु यदि पामर मनुष्य वर्णन करने बैठे तो उसकी अपनी तोतली बोली ही हो सकती है। साधारणतः सर्पादि को न मारने पर भी आश्रम समाज के पच्चीस वर्ष तक बचे रहने का संयोग मानने के बदले ईश्वर की कृपा मानना यदि वहम हो, तो वह वहम भी बनाये रखने जैसा है।

जब मजदूरो की हड़ताल हुई, तब आश्रम की नींव पड़ रही थी। आश्रम का प्रधान प्रवृत्ति बुनाई काम की थी। कातने की तो अभी हम खोज ही नहीं कर पाये थे। अतएव पहले बुनाईघर बनाने का निश्चय किया था। इससे उसकी नींव चुनी जा रही थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book