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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


'पर शिक्षित समाज ने इससे कम प्रभावकारी मार्ग अपनाया है। आम लोगों पर उसका बड़ा प्रभाव है। मैं जब से हिन्दुस्तान आया हूँ तभी से आम लोगों के गाढ़ सम्पर्क में आता रहा हूँ और मैं आपको बतलाना चाहता हूँ कि होमरूल की लगन उनमें पैठ गयी है। होमरूल के बिना लोगों को कभी संतोष न होगा। वे समझते है कि होमरूल प्राप्त करने के लिए जितना बलिदान दिया जाये उतना कम है। अतएव यद्यपि साम्राज्य के लिए जितने स्वयंसेवक दिये जा सके उतने देने चाहिये, तथापि आर्थिक सहायता के विषय में मैं ऐसा नहीं कर सकता। लोगों की हालत को जानने के बाद मैं यह कह सकता हूँ कि हिन्दुस्तान जो सहायता दे चुका है वह उसके सामर्थ्य से अधिक है। लेकिन मैं यह समझता हूँ कि सभा में जिन्होने समर्थन किया है, उन्होंने मरते दम तक सहायता करने का निश्चय किया है। फिर भी हमारी स्थिति विषम है। हम एक पेढी के हिस्सेदार नहीं है। हमारी मदद की नींव भविष्य की आशा पर रखी गयी है और यह आशा क्या है सो जरा खोल कर कहने का जरूरत है। मैं सौदा करना नहीं चाहता पर मुझे इतना तो कहना ही चाहिये कि उसके बारे में हमारे मन में निराशा पैदा हो जाये, तो साम्राज्य के विषय में आज तक की हमारी धारणा भ्रम मानी जायेगी।

'आपने घर के झगडे भूल जाने की सलाह दी है। यदि उसका अर्थ यह हो कि अत्याचार और अधिकारियों के अपकृत्य सहन कर लिये जाये तो यह असंभव है। संगठित अत्याचार का सामना अपनी समूची शक्ति लगाकर करना मैं अपना धर्म मानता हूँ। अतएव आपको अधिकारियों को यह सुझाना चाहिये कि वे एक भी मनुष्य की अवगणना न करे और लोकमत का उतना आदर करे जितना पहले कभी नहीं किया है। चम्पारन में सौ साल पुराने अत्याचार का विरोध करके मैंने ब्रिटिश न्याय की सर्वश्रेष्ठता सिद्ध कर दिखायी है।

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