जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
सेठ अम्बालाल और उनकी धर्मपत्नी दोनों नड़ियाद आये। साथियो से चर्चा करने के बाद वे अत्यन्त सावधानी के साथ मुझे मिर्जापुर वाले अपने बंगले पर ले गये। इतनी बात तो मैं अवश्य कह सकता हूँ कि अपनी बीमारी में मुझे तो निर्मल और निष्काम सेवा प्राप्त हुई, उससे अधिक सेवा कोई पा नहीं सकता। मुझे हलका बुखार रहने लगा। मेरा शरीर क्षीण होता गया। बीमारी लम्बे समय तक चलेगी, शायद मैं बिछौने से उठ नहीं सकूँगा, ऐसा भी एक विचार मन में पैदा हुआ। अम्बालाल सेठ के बंगले में प्रेम से धिरा होने के पर भी मैं अशान्त हो उठा और वे मुझे आश्रम ले गये। मेरा अतिशय आग्रह देखकर वे मुझे आश्रम ले गये।
मैं अभी आश्रम में पीड़ा भोग ही रहा था कि इतने में वल्लभभाई समाचार लाये कि जर्मनी पूरी तरह हार चुका है और कमिश्नर में कहलवाया है कि और रंगरूटो भरती करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सुनकर भरती की चिन्ता से मैं मुक्त हुआ और मुझे शान्ति मिली।
उन दिनो मैं जल का उपचार करता था और उससे शरीर टिका हुआ था। पीड़ शान्त हो गयी थी, किन्तु किसी भी उपाय से पुष्ट नहीं हो रहा था। वैद्य मित्र और डॉक्टर मित्र अनेक प्रकार की सलाह देते थे, पर मैं किसी तरह दवा पीने को तैयार नहीं हुआ। दो-तीन मित्रों ने सलाह दी कि दूध लेने में आपत्ति हो, तो माँस का शोरवा लेना चाहिये और औषधि के रूप में माँसादि चाहे जो वस्तु ली जा सकती है। इसके समर्थन में उन्होंने आयुर्वेद के प्रमाण दिये। एक ने अंड़े लेने की सिफारिस की। लेकिन मैं इनमे से किसी भी सलाह को स्वीकार न कर सका। मेरा उत्तर एक ही था। नहीं।
|