जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
बिछौना छोड़कर उठने की कुछ आशा बंध रही थी और अखबार वगैरा पढने लगा ही था कि इतने में रौलट कमेटी की रिपोर्ट मेरे हाथ में आयी। उसकी सिफारिशे पढकर मैं चौका। भाई उमर सोबानी और शंकरलाल बैकर ने चाहा कि कोई निश्चित कदम उठाना चाहिये। एकाध महीने मैं अहमदाबाद गया। वल्लभभाई प्रायः प्रतिदिन मुझे देखने आते थे। मैंने उनसे बात की और सुझाया कि इस विषय में हमे कुछ करना चाहिये। 'क्या किया जा सकता है?' इसके उत्तर में मैंने कहा, 'यदि थोड़े लोग भी इस सम्बन्ध में प्रतिज्ञा करने मिल जाये तो, और कमेटी की सिफारिश के अनुसार कानून बने तो, हमें सत्याग्रह शुरू करना चाहिये। यदि मैं बिछौने पर पड़ा न होता तो अकेला भी इसमे जूझता और यह आशा रखता कि दूसरे लोग बाद में आ मिलेंगे। किन्तु अपनी लाचार स्थिति में अकेले जूझने की मुझमे बिल्कुल शक्ति नहीं है।'
इस बातचीत के परिणाम-स्वरूप ऐसे कुछ लोगों की एक छोटी सभा बुलाने का निश्चय हुआ, जो मेरे सम्पर्क में ठीक-ठीक आ चुके थे। मुझे तो यह स्पष्ट प्रतीत हुआ कि प्राप्त प्रमाणो के आधार पर रौलट कमेटी ने जो कानून बनानेकी सिफारिश की है उसकी कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे यह भी इतना ही स्पष्ट प्रतीत हुआ कि स्वाभिमान की रक्षा करने वाली कोई भी जनता ऐसे कानून को स्वीकार नहीं कर सकती।
वह सभा हुए। उसमें मुश्किल से कोई बीस लोगों को न्योता गया था। जहाँ तक मुझे याद है, वल्लभभाई के अतिरिक्त उसमें सरोजिनी नायडू, मि. हार्निमैन, स्व. उमर सोबानी, श्री शंकरलाल बैंकर, श्री अनसूयाबहन आदि सम्मिलित हुए थे।
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