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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


हममें बहस होने लगी।

आखिर साहब ने कहा, 'अच्छी बात है, यदि आपको विश्वास हो जाये कि लोग आपकी शिक्षो को समझे नहीं है, तो आप क्या करेगे?'

मैंने उत्तर दिया, 'यदि मुझे इसका विश्वास हो जाय तो मैं इस लड़ाई को मुलतवी कर दूँगा।'

'मुलतवी करने का मतलब क्या? आपने तो मि. बोरिंग से कहा है कि मुक्त होने पर आप तुरन्त वापस पंजाब जाना चाहते है!'

'हाँ, मेरा इरादा तो लौटती ट्रेन से ही वापस जाने का था, पर अब आज तो जाना हो ही नहीं सकता।'

'आप धैर्य से काम लेगे तो आपको और अधिक बाते मालूम होगी। आप जानते है, अहमदाबाद में क्या हो रहा है? अमृतसर में क्या हुआ है? लोग सब कहीं पागल से हो गये है। कई स्थानो में तार टूटे है। मैं तो आपसे कहता हुँ कि इस सारे उपद्रव की जवाबदेही आपके सिर पर है।'

मैंने कहा, 'मुझे जहाँ अपनी जिम्मेदारी महसूस होगी, वहाँ मैं उसे अपने ऊपर लिये बिना नहीं रहूँगा। अहमदाबाद में तो लोग थोडा भी उपद्रव करे तो मुझे आश्चर्य और दुःख होगा। अमृतसर के बारे में मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ कि पंजाब की सरकार में मुझे वहाँ जाने से रोका न होता, तो मैं शान्ति रक्षा में बहुत मदद कर सकता था। मुझे रोक कर तो सरकार ने लोगों को चिढाया ही है।'

इस तरह हमारी बातचीत होती रही। हमारे मन को मेंल मिलने वाला न था। मैं यह कहकर बिदा हुआ कि चौपाटी पर सभा करने और लोगों को शान्ति रखने के लिए समझाने का मेरा इरादा है।

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