जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मौलाना हसरत मोहानी ने अपने भाषण में कहा, 'हमे आपके विदेशी वस्त्र बहिस्कार से संतोष हो ही नहीं सकता। कब हम अपनी जरूरत का सब कपड़ा पैदा कर सकेंगे और कब विदेशी वस्त्रो का बहिस्कार होगा? हमें तो ऐसी चीज चाहिये, जिसका प्रभाव ब्रिटिश जनता पर तत्काल पड़े। आपका बहिस्कार चाहे रहे, पर इससे ज्यादा तेज कोई चीज आप हमे बताइये।' मैं यह भाषण सुन रहा था। मुझे लगा कि विदेशी वस्त्र के बहिस्कार के अलावा कोई दूसरी नई चीज सुझानी चाहिये। उस समय मैं यह तो स्पष्ट रूप से जानता था कि विदेशी वस्त्र का बहिस्कार तुरन्त नहीं हो सकता। यदि हम चाहें तो संपूर्ण रूप से खादी उत्पन्न करने की शक्ति हममे है, इस बात को जिस तरह मैं बाद में देख सका, वैसे उस समय नहीं देख सका था . अकेली मिल तो दगा दे जायेगी, यह मैं उस समय भी जानता था। जब मौलाना साहब ने अपना भाषण पूरा किया, तब मैं जवाब देने के लिए तैयार हो रहा था।
मुझे कोई उर्दू या हिन्दी शब्द तो नहीं सूझा। ऐसी खास मुसलमानों की सभा में तर्कयुक्त भाषण करने का मेरा यह पहला अनुभव था। कलकत्ते में मुस्लिम लीग की सभा में मैं बोला था, किन्तु वह तो कुछ मिनटो का और दिल को छूनेवाला भाषण था। पर यहाँ तो मुझे विरुद्ध मतवाले समाज को समझाना था। लेकिन मैंने शरम छोड़ दी थी। मुझे दिल्ली के मुसलमानों के सामने उर्दू में लच्छेदार भाषण नहीं करना था, बल्कि अपनी मंशा टूटीफूटी हिन्दी में समझा देनी थी। यह काम मैं भली भाँति कर सका। यह सभा इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण थी कि हिन्दी-उर्दू ही राष्ट्रभाषा बन सकती है। अगर मैंने अंग्रेजी में भाषण किया होता, तो मेरी गाड़ी आगे न बढ़ती, और मौलाना साहब ने जो चुनौती मुझे दी उसे देने को मौका और आया भी होता तो मुझे उसका जवाब न सूझता।
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