जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मैं बम्बई में रोगशय्या पर पड़ा हुआ था, पर सबसे पूछता रहता था। मैं खादीशास्त्र में अभी निपट अनाड़ी था। मुझे हाथकते सूत की जरूरत थी। कत्तिनो की जरूरत थी। गंगाबहन जो भाव देती थी, उससे तुलना करने पर मालूम हुआ कि मैं ठगा रहा हूँ। लेकिन वे बहने कम लेने को तैयार न थी। अतएव उन्हें छोड़ देना पड़ा। पर उन्होंने अपना काम किया। उन्होंने श्री अवन्तिकाबाई, श्री रमीबाई कामदार, श्री शंकरलाल बैकर की माताजी और वसुमतीबहन को कातना सिखा दिया और मेरे कमरे में चरखा गूंजने लगा। यह कहने में अतिशयोक्ति न होगी कि इस यंत्र में मुझ बीमार को चंगा करने में मदद की। बेशक यह एक मानसिक असर था। पर मनुष्य को स्वस्थ या अस्वस्थ करने में मन का हिस्सा कौन कम होता है? चरखे पर मैंने भी हाथ आजमाया। किन्तु इससे आगे मैं इस समय जा नहीं सका।
बम्बई में हाथ की पूनियाँ कैसे प्राप्त की जाय? श्री रेवाशंकर झेवरी के बंगले के पास से रोज एक घुनिया तांत बजाता हुआ निकला करता था। मैंने उसे बुलाया। वह गद्दो के लिए रुई धूना करता था। उसने पूनियाँ तैयार करके देना स्वीकार किया। भाव ऊँचा माँगा, जो मैंने दिया। इस तरह तैयार हुआ सूत मैंने बैष्णवो के हाथ ठाकुरजी की माला के लिए दाम लेकर बेचा। भाई शिवजी ने बम्बई में चरखा सिकाने का वर्ग शुरू किया। इन प्रयोगों में पैसा काफी खर्च हुआ। श्रद्धालु देशभक्तो ने पैसे दिये और मैंने खर्च किये। मेरे नम्र विचार में यह खर्च व्यर्थ नहीं गया। उससे बहुत-कुछ सीखने को मिला। चरखे की मर्यादा का माप मिल गया।
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