जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
कांग्रेस की महासमति ने इस प्रश्न पर विचार करने के लिए कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन सन् 1920 के सितम्बर महीने में कलकत्ते में करने का निश्चय किया। तैयारियाँ बहुत बड़े पैमाने पर थी। लाला लाजपतराय सभापति चुने गये थे। बम्बई से खिलाफत स्पेशल और कांग्रेस स्पेशल रवाना हुई। कलकत्ते में सदस्यों और दर्शको का बहुत बड़ा समुदाय इकट्ठा हुआ।
मौलाना शौकतअली के कहने पर मैंने असहयोक के प्रस्ताव का मसविदा रेलगाड़ी में तैयार किया। आज तक मेरे मसविदो में 'शान्तिमय' शब्द प्रायः नहीं आता था। मैं अपने भाषण में इस शब्द का उपयोग करता था। सिर्फ मुसलमान भाइयो की सभा में 'शान्तिमय' शब्द से मुझे जो समझाना था वह मैं समझा नहीं पाता था। इसलिए मैंने मौलाना अबुलकलाम आजाद से दूसरा शब्द माँगा। उन्होंने 'बाअमन' शब्द दिया और असहयोग के लिए 'तर्के मवालत' शब्द सुझाया।
इस तरह अभी गुजराती में, हिन्दी में, हिन्दुस्तानी में असहयोग की भाषा मेरे दिमाग में बन रही थी कि इतने में ऊपर लिखे अनुसार कांग्रेस के लिए प्रस्ताव का मसविदा तैयार करने का काम मेरे हाथ में आया। प्रस्ताव में 'शान्तिमय' शब्द लिखना रह गया। मैंने प्रस्ताव रेलगाडी में ही मौलाना शौकतअली को दे दिया। रात में मुझे ख्याल आया कि मुख्य शब्द 'शान्तिमय' तो छूट गया है। मैंने महादेव को दौड़ाया और कहलवाया कि छापते समय प्रस्ताव में 'शान्तिमय' शब्द बढ़ा ले। मेरा कुछ ऐसा ख्याल है कि शब्द बढाने से पहले सी प्रस्ताव छप चुका था। विषय-विचारिणी समिति की बैठक उसी रात थी। अतएव उसमें उक्त शब्द मुझे बाद में बढ़वाना पड़ा था। मैंने देखा कि यदि मैं प्रस्ताव के साथ तैयार न होता, तो बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता।
मेरी स्थिति दयनीय थी। मैं नहीं जानता था कि कौन प्रस्ताव का विरोध करेगा और कौन प्रस्ताव का समर्थन करेगा। लालाजी के रुख के विषय में मैं कुछ न जानता था। तपे-तपाये अनुभवी योद्धा कलकत्ते में उपस्थित हुए थे। विदुषी एनी बेसेंट, पं. मालवीयजी, श्री विजयराधवाचार्य, पं. मोतीलालजी, देशबन्धु आदि उनमें थे।
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