लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


तो अब क्या किया जाये? अब तो बाबाजी की बिल्ली वाला किस्सा हुआ। चुहों को भगाने के लिए बिल्ली, बिल्ली के लिए गाय, यों बाबाजी का परिवार बढ़ा, उसी तरह मेरे लोभ का परिवार बढ़ा। वायोलिन बजाना सीख लूँ तो सुर और ताल का ख्याल हो जाय। तीन पौण्ड वायोलिन खरीदने में गंवाये और कुछ उसकी शिक्षा के लिए भी दिये। भाषण करना सीखने के लिए एक तीसरे शिक्षक का घर खोजा। उन्हें भी एक गिन्नी तो भेट की ही। बेल 'स्टैण्डर्ड एलोक्युशनिस्ट' पुस्तक खरीदी। पिट का एक भाषण शुरू किया।

इन बेल साहब ने मेरे कान में बेल (घंटी) बजायी। मैं जागा।

मुझे कौन इंग्लैण्ड में जीवन बिताना है? लच्छेदार भाषण करना सीखकर मैं क्या करुँगा? नाच-नाचकर मैं सभ्य कैसे बनूँगा? वायोलिन तो देश में भी सीखा जा सकता हैं। मैं तो विद्यार्थी हूँ। मुझें विद्या-धन बढ़ाना चाहिये। मुझे अपने पेशे से सम्बन्ध रखने वाली तैयारी करनी चाहिये। मैं अपने सदाचार से सभ्य समझा जाऊँ तो ठीक हैं, नहीं तो मुझे यह लोभ छोड़ना चाहिये।

इन विचारो की घुन में मैंने उपर्युक्त आशय के उद्गारोवाला पत्र भाषण-शिक्षक को भेज दिया। उनसे मैंने दो या तीन पाठ ही पढे थे। नृत्य-शिक्षिका को भी ऐसा ही पत्र लिखा। वायोलिन शिक्षिका के घर वायोलिन लेकर पहुँचा। उन्हें जिस दाम भी बिके, बेच डालने की इजाजत दे दी। उनके साथ कुछ मित्रता का सा सम्बन्ध हो गया था। इस कारण मैंने उनसे अपने मोह की चर्चा की। नाच आदि के जंजाल में से निकल जाने की मेरी बात उन्होंने पसन्द की।

सभ्य बनने की मेरी यह सनक लगभग तीन महीने तक चली होगी। पोशाक की टीपटाप तो बरसों चली। पर अब मैं विद्यार्थी बना।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book