जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
अब तक मैं कुटुम्बों में रहता था। उसके बदले अपना ही कमरा लेकर, और यह भी तय किया कि काम के अनुसार औऱ अनुभव प्राप्त करने के लिए अलग-अलग मुहल्लों में घर बदलता रहूँगा। घर मैंने ऐसी जगह पसमद किये कि जहाँ से काम की जगह पर आधे घंटे में पैदल पहुँचा जा सके और गाड़ी-भाड़ा बचे। इससे पहले जहाँ जाना होता वहाँ की गाड़ी-भाड़ा हमेशा चुकाना पड़ता और घूमने के लिए अलग से समय निकालना पड़ता था। अब काम पर जाते हुए ही घूमने की व्यवस्था जम गयी, और इस कारण मैं रोज आठृदस मील घूम लेता था। खासकर इस एक आदत के कारण मैं विलायत में शायद ही कभी बीमार पड़ा होऊँगा। मेरा शरीर काफी कस गया। कुटुम्ब में रहना छोड़कर मैंने दो कमरे किराये पर लिये। एक सोने के लिए और दूसरा बैठक के रुप में। यह फेरफार की दूसरी मंजिल कहीं जा सकती हैं। तीसरा फेरफार अभी होना शेष था।
इस तरह आधा खर्च बचा। लेकिन समय का क्या हो? मैं जानता था कि बारिस्टरी की परीक्षा के लिए बहत पढ़ना जरुरी नहीं हैं, इसलिए मुझे बेफिकरी थी। पर मेरी कच्ची अंग्रेजी मुझे दुःख देती थी। लेली साहब के शब्द 'तुम बी.ए. हो जाओ, फिर आना' मुझे चुभते थे। मैंने सोचा मुझे बारिस्टर बनने के अलावा कुछ और भी पढ़ना चाहिये। ऑक्सफर्ड केम्ब्रिज की पढाई का पता लगाया। कई मित्रो से मिला। मैंने देखा कि वहाँ जाने से खर्च बहुत बढ़ जायेगा और पढ़ाई लम्बी चलेगी। मैं तीन साल से अधिक रह नहीं सकता था। किसी मित्र ने कहा, 'अगर तुम्हें कोई कठिन परीक्षा ही देनी हो, तो लंदन की मैंट्रिक्युलेशन पास कर लो। उसमें मेंहनत काफी करनी पड़ेगी और साधारण ज्ञान बढ़ेगा। खर्च विलकुल नहीं बढ़ेगा।' मुझे यह सुझाव अच्छा लगा। पर परीक्षा के विषय देख कर मैं चौका। लेटिन और दूसरी एक भाषा अनिवार्य थी। लेटिन कैसे सीखी जाय? पर मित्र ने सुझाया, 'वकील के लिए लेटिन बहुत उपयोगी हैं। लेटिन जाननेवाले के कानूनी किताबे समझना आसान हो जाता हैं, और रोमन लॉ की परीक्षा में एक प्रश्नपत्र केवल लेटिन भाषा में ही होता हैं। इसके सिवा लेटिन जानने से अंग्रेजी भाषा पर प्रभुत्व बढ़ता हैं। '
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