जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पाठक समझ ले कि यह पत्र मैंने क्षणभर में नहीं लिख डाला था। न जाने कितने मसविदे तैयार किये होगें। पर यह पत्र भेज कर मैंने अपने सिर का एक बड़ा बोझ उतार डाला। लगभग लौटती डाक से मुझे उस विधवा बहन का उत्तर मिला। उसने लिखा था :
'खुले दिल से लिखा तुम्हार पत्र मिला। हम दोनो खुश हुई और खूब हँसी। तुमने जिस असत्य से काम लिया, वह तो क्षमा के योग्य ही हैं। पर तुमने अपनी सही स्थिति प्रकट कर दी यह अच्छा ही हुआ। मेरा न्योता कायम हैं। अगले रविवार को हम अवश्य तुम्हारी राह देखेंगी, तुम्हारे बाल-विवाह की बाते सुनेंगी और तुम्हार मजाक उड़ाने का आनन्द भी लूटेंगी। विश्वास रखो कि हमारी मित्रता तो जैसी थी वैसी ही रहेगी।'
इस प्रकार मैंने अपने अन्दर घुसे हुए असत्य के विष को बाहर निकाल दिया और फिर अपने विवाह आदि की बात करने में मुझे कही घबराहट नहीं हुई।
|