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स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक वनस्पतियाँ

चमत्कारिक वनस्पतियाँ

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9829
आईएसबीएन :9781613016060

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प्रकृति में पाये जाने वाले सैकड़ों वृक्षों में से कुछ वृक्षों को, उनकी दिव्यताओं को, इस पुस्तक में समेटने का प्रयास है


मूली या मूलक

 9829_34_Muli

विभिन्न भाषाओं में नाम -

संस्कृत - मूलक।
हिन्दी - मूली, मुराई, मूरा।
बंगला - मूला।
मराठी - मुला।
गुजराती - मूलो।
पंजाबी - मुरि।
फारसी - तुर्ब।
अंग्रेजी - रेडिश (Radish)
लैटिन - राफानुस साटीबुस (Raphanus sativus L.)
कुल - क्रूसीफेरी Cruciferae/Brassicaceae
मूली के क्षुप देखने में प्रायः सरसों जैसे होते है। यह प्रायः दो प्रकार की होती है :
1. देशी मूली (लघु मूलक या चाणक्य मूलक)
2. दूसरी नेवार मूली (नेपाल मूलक)

मूली के आकार के अनुसार लंबी, दीर्घवृत्ताभ तथा शलजम जैसी के 3 भेद होते हैं। निवार मूली में पतली मूली की अपेक्षा तीक्ष्णता बहुत कम पाई जाती है और इसका कंद भी हाथी दांत जैसे काफी मोटे एवं लम्बे होते हैं। मूली का अचार-मुरब्बा भी बनाया जाता है। औषधि की दृष्टि से पतली मूली ही उपयोगी होती है। इसमें सरसों के समान किन्तु उससे कुछ मोटी 2.5 सेमी से 15 सेमी.( 1 इंच से 6 इंच) तक लम्बी फलियां लगती हैं जिसके पकने पर सरसों के समान बीज निकलते हैं। पकने पर इसकी फली फटती नहीं है।

मूली की खेती पूरे भारत में भारी परिमाण में की जाती है। कच्ची मूली सब्जी मंडियों में सर्वसुलभ रहती है।

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