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धर्म एवं दर्शन >> कामना और वासना की मर्यादा

कामना और वासना की मर्यादा

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9831
आईएसबीएन :9781613012727

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कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।

हमारा सत्संकल्प

  • हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।
  • शरीर को भगवान का मंदिर समझकर आत्मसंयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
  • मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
  • इंद्रियसंयम, अर्थसंयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे।
  • अपने आप को समाज का एक. अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
  • मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।
  • समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।
  • चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एव सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
  • अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
  • मनुष्य के मूल्याकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एव विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।
  • दूसरों के साथ वह व्यवहार नहीं करेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद नहीं। नर-नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।
  • संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य-प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।
  • परंपराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।
  • सज्जनो कों संगठित् करने, अनीति से लोहा लेने और नवसृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।
  • राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, संप्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।
  • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है- इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा।
  • 'हम बदलेंगे-युग बदलेगा', 'हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा' इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।

।। समाप्त।।


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