धर्म एवं दर्शन >> कामना और वासना की मर्यादा कामना और वासना की मर्यादाश्रीराम शर्मा आचार्य
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कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।
इच्छा की निकृष्टता उसके सीमित अथवा साधारण होने में नहीं है, निकृष्टता उसके उद्देश्य की तुच्छता में है। जैसे यदि कोई, यह इच्छा करता है कि यदि वह किसी प्रकार से मिडिल पास हो जाता, तो पंचायत-मंत्री बनकर अनपढ़ ग्रामीणों से खूब लाभ उठाता। मिडिल पास करने और पंचायत-मंत्री बनने की इच्छा अपने में कोई बड़ी इच्छा न होते हुए भी निकृष्ट नहीं मानी जा सकती, किंतु इसको निकृष्ट बना देता है, इसके साथ निरक्षर ग्रामीणों से लाभ उठाने का जुड़ा हुआ उद्देश्य! यदि यह इच्छा मिडिल पास करने और पंचायत-मंत्री के रूप में अपनी शिक्षा का उपयोग करने तक सीमित रहती तो बहुत निःस्वार्थ एवं उच्च न होने पर भी निकृष्ट नहीं कही जा सकती थी। यह केवल निकृष्ट हुई है, अपने उद्देश्य की तुच्छता के कारण और यदि इसी साधारण इच्छा के साथ पंचायत-मंत्री बनकर निरक्षर ग्रामीणों को साक्षर बनाने और गाँवों का यथासंभव विकास करने में योग देने का उद्देश्य जुड़ जाता तो यही साधारण इच्छा उच्चकोटि की परिधि में पहुँच जाती। यद्यपि उद्देश्य के उच्च होने पर भी उक्त इच्छा में व्यक्ति का जीविका संबंधी स्वार्थ निहित था और उद्देश्य में भी कोई अतिरिक्त विशेषता नहीं, एकमात्र मंत्री के कर्त्तव्य का सच्चा पालन भर ही है, तथापि इस इच्छा को निकृष्ट अथवा सामान्यतम नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जीविका संबंधी उत्तरदायित्व को पूर्ण कर्त्तव्यनिष्ठा तथा ईमानदारी के साथ निर्वाह करने की मनोवृत्ति भी ऊँची ही मानी जाएगी।
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