लोगों की राय

कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832
आईएसबीएन :9781613016046

Like this Hindi book 0

ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है



हुण्डी


एक सेठ बूढ़ा हो चला था। एक दिन उसने अपनी पत्नी सेठानी से कहा- अब हमारी जिन्दगी न जाने कितने दिन की शेष रह गई है। अतः अब हमें अपने लड़के किरोड़ीमल की शादी किसी सुन्दर सी लड़की के साथ कर देनी चाहिए ताकि जीते-जी हम अपने पुत्र का घर बसाकर आराम से मर सकें और पितर ऋण से उऋण हो जाएं।

उसकी बात सुनकर शान्ति देवी ने कहा- ये तो आपने अच्छी बात सोची जी। मैं भी यही चाहती हूं। आप कल ही हमारे दूर के रिश्तेदार सेठ घीसाराम से मिल लो उसकी बेटी ल़क्ष्मी भी अब तो जवान हो गई होगी, वो इस रिश्ते से कतई इंकार नहीं करेगा।

दूसरे ही दिन सेठ दुर्गाप्रसाद अपने दूर के रिश्तेदार घीसाराम के घर गया और अपने लड़के किरोड़ीमल के लिए घीसाराम की लड़की लक्ष्मी का हाथ मांग लिया। घीसाराम अपनी लड़की लक्ष्मी का हाथ किरोड़ीमल के हाथ में देने के लिए तैयार हो गया।

विधि-विधान के साथ सेठ घीसाराम ने अपनी लड़की की शादी किरोड़ीमल के साथ कर दी। सेठ घीसाराम की लड़की का जैसा नाम था वह वास्तव में लक्ष्मी नाम के अनुरूप ही थी। वह सुन्दर, सुशील, सर्वगुण सम्पन्न थी। शादी के बाद लक्ष्मी कुछ दिन ससुराल रहकर वापिस अपने पिता के घर चली गई। कुछ दिन बाद सेठ दुर्गाप्रसाद ने अपने बेटे से किरोड़ीमल से कहा-देखो बेटा किरोड़ी अब हमारा कुछ नहीं पता कि हम कब स्वर्ग सिधार जाएं। हम चाहते हैं कि मरने से पूर्व अपनी पुत्रवधु को देख लें।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book