कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
घुघ्घी वाली चिड़िया
एक बार एक चिड़िया थी। जिसके सिर पर एक लम्बी सी घुघ्घी थी। उसका घोंसला एक जमींदार के खेत में खड़ी जांटी पर था। वह चिड़िया हमेशा अपने घोंसले में रहती थी। भूख लगती तो वह वहीं खेत में पड़े दाने आदि चुगकर अपनी भूख का निवारण कर लेती और पानी के लिए वहीं जमींदार के बर्तनों में रखे पानी को पी लेती। इस प्रकार से उस निठल्ली चिड़िया का सारा दिन व्यतीत होता।
एक दिन उस चिड़िया को उस जमींदार के खेत में एक पैसा पड़ा हुआ मिला। चिड़िया उस एक पैसे को पाकर बहुत खुश हुई और गाना गाती फिरती - हम पैसे वाले हो गये जी, हम पैसे वाले हो गये जी, हम पैसे वाले हो गये जी।
एक दिन जमींदार ने यह सुना तो उसने उस एक पैसे को उठा लिया। चिड़िया अब तो बस जमींदार के सिर पर उड़ती रही और बार-बार यही कहती रही- कोई भूखा मरता ले गया जी, कोई भूखा मरता ले गया जी, कोई भूखा मरता ले गया जी।
जमींदार ने सोचा यह चिड़िया नहीं मानेगी, सो उसने वह पैसा वापिस उसी घोंसले में रख दिया। अब जब भी वह चिड़िया उस जमींदार को देखती तो कहती- कोई डरके वापिस धर गया जी, कोई डरके वापिस धर गया जी, कोई डरके वापिस धर गया जी।
जब उस जमींदार ने उस चिड़िया की ये बातें सुनी तो उसे बहुत गुस्सा आया और पास में खडे़ एक पेड़ की लम्बी छड़ी तोड़ी और उस चिड़िया को मारी मगर वह जरा भी नहीं हिली। किसी तरह से न बच पाने की दशा में वह चिड़िया की टांग पर लगी और उसकी टांग से खून बहने लगा। इस पर वह चिड़िया घबराई नहीं, और ना उसे पीड़ा का अनुभव हुआ बल्कि उसके मुंह से अब भी गीत ही निकल रहा था। कोई दूध का प्याला पी लो जी, कोई दूध का प्याला पी लो जी, कोई दूध का प्याला पी लो जी।
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