कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
चूहे से सीख
बहुत पुरानी बात है। एक घर में शादी थी। उस घर की चार औरतें खेतों में शाम को शौचादि के लिए जा रही थीं। सभी औरतें आपस में बातें कर रही थीं और कह रही थीं कि अरी बहनों आज हमारे घर में शादी है परन्तु गीत तो हमें आते ही नहीं।
तभी उनमें से एक औरत की नजर एक चूहे पर गई। वह चूहा बिल खोद रहा था। उसको देखकर वह औरत कहने लगी- मैंने तो गीत सीख लिया।
खुदक-खुदक क्या खोदा...
यह सुनकर वह चूहा चुपचाल बैठ गया। यह देखकर दूसरी औरत कहने लगी- बहनों मैंने भी गीत सीख लिया और गाने लगी-
चुपक-चाला क्यों बैठा...
यह सुनकर वह चूहा धीरे-धीरे चलने लगा। उसको देखकर तीसरी औरत कहने लगी, मैंने भी गीत सीख लिया और गाने लगी-
रूघक-रूघक कहां चला...
यह सुनकर वह चूहा जोर-जोर से दौड़ने लगा। यह देखकर चौथी औरत कहने लगी, बहनों मैंने भी गीत सीख लिया-
पटक-पछाड़, पटक पछाड़...
ये गीत सीखकर चारों घर वापिस आ गईं। घर आने पर चारों ने शाम तक घर का काम किया और शादी की तैयारियां कीं। उसके बाद शाम को आई गीत गाने की बारी। शाम को उनके घर के पिछवाड़े से चोरों ने सेंध लगा रखी थी और पीछे से घर की दीवार की ईंटें निकालने लगे।
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