कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
कुदाल कंगना
एक बिल्ली थी जो कि जाट के यहां‘कढ़ावणी’ का सारा दूध पी जाती थी। एक दिन जाट ने सोचा क्यों न आज मैं इस बिल्ली को मार दूं। इसलिए वह छुप कर बैठ गया। जब वह बिल्ली आई और उसने बिलोवने में मुंह डाला ही था कि जाट ने हाथ में लिए लट्ठ को बिल्ली पर दे मारा। बिल्ली तो बच निकली परन्तु वह बिलोवना टूट गया और उसका ऊपर का घेरा बिल्ली के सिर में टूट कर लटक गया।
अब वह बिल्ली मुश्किल से जान बचा कर गांव से बाहर निकली। गांव के बाहर उसने देखा कि एक मुर्गा बाहर खेतों में घूम रहा था। मुर्गे ने जब बिल्ली को देखा तो मुर्गे से रहा न गया और बिल्ली के पास जाकर कहने लगा- मौसी राम-राम। कहां जा रही हो?
बिल्ली बोली- राम-राम, बेटे मैं गंगा जी पर स्नान करने जा रही हूं।
यह सुनकर मुर्गे ने उसके गले गले तरफ इशारा करते हुए पूछा- मौसी ये क्या है?
तब बिल्ली बोली- बेटे मेरे गले में यह कुदाल कंगना है।
फिर मुर्गा कहने लगा कि मौसी क्या मैं भी तुम्हारे साथ चलूं।
बिल्ली बोली- चलो बेटा, एक से दो भले।
वे दोनों चल पड़े। आगे रास्ते में चलते हुए उन दोनों को एक मोर मिला। मोर ने भी जब बिल्ली को देखा तो उससे भी रहा न गया। उसने बिल्ली से पूछा- मौसी तुम्हारे गले में ये क्या है तथा तुम दोनों कहां जा रहे हो?
यह सुनकर बिल्ली ने सोचा आज तो दो-दो शिकार अपने आप मेरे पास चलकर आए हैं। यह सोचकर बिल्ली बोली- बेटे मेरे गले में यह कुदाल-कंगना है तथा मैं गंगा जी नहाने जा रही हूँ।
यह सुनकर वह मोर बोला- क्या मैं भी साथ चल सकता हूँ मौसी।
बिल्ली तो चाहती ही यही थी कि वह भी साथ चले। बोली- हां-हां बेटे तुम भी साथ चल सकते हो। दो से तीन भले। सभी चल पड़ते हैं।
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