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कहानी संग्रह >> कुमुदिनी

कुमुदिनी

नवल पाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832
आईएसबीएन :9781613016046

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

अब की बार मेरा मानना है कि हमें उसके खिलाफ आवाज उठाकर उसे पदच्युत कर देना चाहिए और जंगल में राष्ट्रपति शासन लागू करा देना चाहिए, इससे ऊपर हाईकोर्ट में इस केस को ले जाकर वहां के मुख्य न्यायाधीश को यह ज्ञापन सौंप कर दोबारा से जंगल में इलेक्शन कराने की मांग करनी चाहिए। यह सुनकर कौआ बोला- बताईये जनाब तो फिर हम जंगल का सरपंच चुने तो चुनें किसे, क्योंकि मुझे लगता है कि हम जितने भी शाकाहारी जीव हैं। वो हम किसी भी मांसाहारी जीव से अपनी खुद रक्षा नहीं कर सकते हैं। फिर हमारी रक्षा कौन कर सकेगा। यदि कोई शाकाहारी जीव बना तो वह उसकी जनता अर्थात जंगली जीवों की मांसाहारी जीवों से कैसे रक्षा करेगा।

कौवे की बात सुन गीदड़ कहने लगा- मेरा जहां तक मानना है तो हमारा सरपंच शेर ही ठीक है, क्योंकि वह हम सभी जीवों की दूसरे बाहर वाले जीवों से रक्षा कर सकता है। अब वह हमारी रक्षा करता है तो उसे भी कुछ मेहनताना चाहिए और फिर उसके जो मेंबरगण हैं उनका पेट भरना भी उसकी जिम्मेदारी है। यह पद संभालना इतना आसान नहीं है। सबकी सुननी पड़ती है।

उसकी बातों को सुनकर कोयल कहने लगी- सुननी सबकी पड़ती है और करना कुछ नहीं। ये कैसा सरपंच है। आज हम औरत जाति का तो घर से निकलना ही दूभर हो गया है। पहले हमें कहीं भी जाने की पूरी आजादी थी और आज हम घर से निकलती भी हैं तो पूरे अदब के साथ निकलना पड़ता है। पूरे कपड़े पहनने के बावजूद भी हमें हवस का शिकार होना पड़ता है। हमारे बाहर निकलते ही कुछ मनचले कौवे हमें बीच राह पकड़ लेते हैं। जिनको हमारी तरफ देखने से भी डर लगता था आज वही जीव जैसे कि मोर, कबूतर, तोते आदि हम पर कुदृष्टि जमाये रहते हैं। मैं तो कहती हूं कि ऐसे पंचायती राज को खत्म किया जाये, और नये शासन की व्यवस्था की जाये।

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