कहानी संग्रह >> कुमुदिनी कुमुदिनीनवल पाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
यह सुन कर खरगोश कहने लगा- देखो भाईयो और बहनो, मैंने जैसा कि आप सभी से बारी-बारी सरपंच पद के लिए निवेदन किया, परन्तु सभी ने अपनी कमजोरियों को बयान कर अपना पल्ला झाड़ लिया। अब मैं इस सभा में बैठे हुए सभी बहन और भाईयों से एक बार फिर से दरख्वास्त करूंगा कि जो भी भाई या बहन अपने आपको इस पद के लिए उपयुक्त मानते हैं वो अपना नाम मुझे दें ताकि हम जंगल में भ्रष्टाचार विरोधी सुशासन जंगल के लिए तैयार कर सकें।
एक बार फिर से सभी जीव एक-दूसरे के मुंह को ताकने लगे। कोई भी शेर के अपॉजिट में नहीं खड़ा होना चाहता था। यह देख कर वह खरगोश कहने लगा कि आज पता चल गया है कि जंगल में कोई भी भ्रष्ट शासन के खिलाफ आवाज नहीं उठाना चाहता है। सभी जैसा शासन है, उसी में जी लेना चाहते हैं।
उसने एक बार फिर से बगूले से कहा- अब आप ही बतायें कि हमें क्या करना चाहिए।
यह सुन कर बगुला कहने लगा- देखो भाइयों, आप सभी यहां आये, इससे एक बात तो सिद्ध होती है कि आप भी इस भ्रष्ट शासन का विरोध करना चाहते हैं और यहां पर जो बात हुई है उससे भी यह सिद्ध होता है कि-हर कोई टालमटोल करके इस शासन के खिलाफ आवाज भी नहीं उठाना चाहता है। सरपंच पद पर खड़ा होकर कोई भी युवा साथी वर्तमान सरपंच शेर से पंगा भी नहीं लेना चाहता है। यदि हम खुलकर इस बात का विरोध नहीं करेंगे तो वह यूं ही अपनी मनमानी करता रहेगा। जिससे आम जीव का जीना दूभर हो जायेगा। किसी की भी बहू-बेटी को उसके पंच उठा ले जायेंगे और हम आराम से देखते रहेंगे। मरे हुए तो हम वैसे ही हैं जब हमारा जमीर ही मर चुका है तो हम जीते हुए भी मरे के समान हैं मगर हमें अपने जंगल के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा ताकि हमारी आने वाली नस्लें इस प्रकार के भ्रष्टाचार से मुक्त हो सकें। ये शक्तिशाली जीव पद नियुक्ति के समय तो हमें जाने क्या-क्या सपने दिखाते हैं और बनने के बाद हमारी बहू-बेटियों को उठाते हैं। हम पूछने जायें तो हमें गुंडों से पिटवाते हैं। अब बताओ हमें कुछ तो करना होगा। मरना तो हमें वैसे भी है और कुछ करेंगे तो भी मरना है तो क्यों ना हम कुछ करके ही मरें। कल को चील बहन आपको कोई उठायेगा, या चिड़िया आपकी बारी हो सकती है, या फिर किसी कबूतर की बहन मां या पत्नी को कोई उठा ले जायेगा। उसे छुडाने जाओ तो उसके पंच उसे मार डालेगें और खा जायेंगे। मैना, बटेर, गुरशल व अन्य सभी जंगल की बहनें, पत्नियां और माताऐं हैं। सबकी इज्जत है। रिश्वत मांगी जाती है। एक जीव दूसरे जीव का खून चूसवाने के लिए उसके पास ले जाता है। कब तक चलेगा ये। उनके भय से जंगल की गर्भवती बहनों ने मादा संतानों को जन्म देना ही बंद कर दिया। घर की इज्जत जाने से तो अच्छा है कि उसे पैदा ही ना होने दिया जाये। अब आप में से कोई भी यदि इस शासन का विरोध नहीं करना चाहता है तो मत करो। हमारा क्या है हम तो आजाद पंछी हैं। आज यहां हैं तो कल किसी और तालाब में चले जायेंगे, पर तुम तो कुछ समझो।
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