कहानी संग्रह >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलेश्रीराम शर्मा आचार्य
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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।
हमारा निर्माण संकल्प
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हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।
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शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर आत्म-संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
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मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
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इंद्रिय-संयम, अर्थ-संयम, समय-संयम और विचार-संयम का सतत् अभ्यास करेंगे।
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अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
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मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।
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समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।
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चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
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अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
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मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।
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दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं।
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नर-नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।
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संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एव धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।
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परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व देंगे।
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सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नवसृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।
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राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा प्रान्त, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।
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मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे ओंर दूसरौ को श्रेष्ट बनायेंगे, तो युग अवश्य बदलेगा।
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हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।
।। समाप्त।।