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मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :61
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9833
आईएसबीएन :9781613012833

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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।

समय हर किसी को बाधित करता है कि युग धर्म पहचाना जाए और उसे अपनाने में आनाकानी न की जाए। नीति-निष्ठा एव समाज-निष्ठा के संबंध में शाश्वत हो सकता है, पर रीति-रिवाजों, क्रिया-कलापों, उपकरणों आदि प्रचलित नियम अनुशासन के संबंध में पुरातन परिपाटी के भक्त तो कहे जा सकते हैं, पर अपने अतिरिक्त और किसी को इसके लिए सहमत नहीं कर सकते कि लकीर के फकीर बने रहने में ही धर्म का पालन सन्निहित है, जो पुरातन काल में चलता रहा है उसमें हेर-फेर करने की बात किसी को सोचनी ही नहीं चाहिए, ऐसा करने को अधर्म कहा जाएगा और उसे करने वाले पर पाप चढ़ेगा।

किसी भी भली-बुरी प्रथा को अपनी और पूर्वजों की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर उस पर अड़ा और डटा तो रहा जा सकता है, पर उसमें बुद्धिमानी का समावेश तनिक भी नहीं है। मनुष्य प्रगतिशील रहा है और रहेगा। वह सृष्टि के आदि से लेकर अनेक परिवर्तनों के बीच से गुजरता हुआ आज की स्थिति तक पहुँचा है। यह क्रम आगे भी चलता ही रहने वाला है। पुरातन के लिए हठवादी बने रहना किसी भी प्रकार, किसी के लिए भी हितकारी नहीं हो सकता। युग धर्म को अपनाकर ही मनुष्य आगे बढ़ा है और आगे भी उसके लिए तैयार रहेगा। समय का यह ऐसा तकाजा है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता।              

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