कहानी संग्रह >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलेश्रीराम शर्मा आचार्य
|
0 |
समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।
अमीरी के साथ जुड़ा-अपव्यय एक भारी रोग है। इसी के सहारे तो किसी को अमीर होने के भ्रम में डाला जा सकता है। फैशन, जेवर, ठाटबाट, नशेबाजी जैसे दुर्व्यसन तो अमीरी के प्रतीक बन गए हैं। विवाह-शादियों के अवसर पर तो यह अमीरी सिर पर चढ़ बैठती है और आवश्यक साधनों को भी बेच कर उन्हें उसकी फुलझड़ी जलाने के लिए आकुल-व्याकुल कर देती है। दूल्हे और दुल्हन को इस तरह सजाया जाता है मानो वे राजकुमार और राजकुमारी से कम न हों। बारातों और दावतों को देख कर यह कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि यह लोग दैनिक जीवन में रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल से जुटा पाते होंगे। ऐसा लगता है मानों इन्हें कहीं से मुफ्त का खजाना मिल गया हो?
औसत भारतीय को दिनभर में कुछ घंटे का ही काम मिलता है। शेष तो वे ज्यों-त्यों मटरगश्ती, आवारागर्दी, निठल्लेबाजी में ही बिताते रहते हैं। यदि इस समय को कठोर श्रम के साथ नियोजित किया जा सके, तो कोई कारण नहीं कि उसके बदले वे साधन न मिल सकें, जिनके सहारे खुशहाली की परिस्थितियों में रहा जा सकता है! कृषि कार्य में निरत व्यक्ति यदि चाहे, तो अपने प्रायः आधे समय में खालीपन को कुटीर उद्योगों में लगा सकता है और अतिरिक्त आजीविका का कोई सुयोग बिठा सकता है।
जिन्हें पैसे की आवश्यकता या तंगी नहीं, वे बचत वाले समय को शिक्षा संवर्धन में, गंदगी के स्थान पर स्वच्छता नियोजित करने में लगा सकते हैं। परिवार के साथ मिल जुलकर उस परिकर को सभ्यजनों जैसा बना सकते हैं। स्वास्थ्य रक्षा, आजीविका अभिवृद्धि, कलाकौशल, शिक्षा-विस्तार जैसे अनेक कार्य हैं, जिनके लिए यदि उत्साह उभरे तो कोई कारण नहीं कि आज की अपेक्षा कल अधिक संपन्न, शिक्षित, सभ्य एवं प्रतिभाशाली न बना जा सके।
|