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मूछोंवाली

मधुकान्त

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

19

नरसी का भात


सुनीता के इकलौते लड़के की शादी थी। वह अपने भाई के घर भात-नौतन आयी। गली मोहल्ले की औरतें इकट्ठी हुई। गीत गाए गए। सभी गीत गाने वालों को मिठाईयां और उपहार बांटे गए। सांय को सुनीता ने अपने भाई रामकरण को मिठाई, कपड़े, खिलौने और मिलनी दी तो वह चिन्ता में डूब गया।

‘भाई रामकरण बात के से, मनैं तूं कुछ उदास लागै सै।’बहन ने पूछा।

‘बहन तूं इतना सामान ले आयी, मेरे तै कयूंकर भात भरा जाएगा।

मेरे तै अपणा कर्जा भी नहीं पाटता। तेरा भाई तो नरसी नंग सै- कैसे

भात भरेगा?’उसकी आंखे नम हो गयीं।

‘नरसी का साथी तो कृष्ण बनग्या, पर मेरा तो कोई साथी भी नजर नहीं आता।’

‘भाई तूं कुछ चिंता मत कर। मेरे तै कुछ छानी नहीं सैं, बापू ने जमीन बेचकर म्हारी दोनों की पढ़ाई में पैसा लगाया। बीमारी से तेरी पढ़ाई बीच में छूटगी। मेरी पढ़ाई पूरी करवा दी तो आज मैं अपने पैरों पर खड़ी सूं, ये भात-छूछक पुराने रिवाज बना रखे सै। जब लड़कियां अनपढ़ और कमजोर होती थीं। मैं तो इन रिवाजों में घणा विश्वास नहीं करती, पर भाई मेरी ससुराल वाले पुराने ख्यालों के सै। इसलिए लोक दिखावा करना पड़ै सै। ये ले पचास हजार और भात की तैयारी कर ले।’

कहते हुए बहन ने नए नोटों की एक गड्डी भाई के हाथ में थमा दी।

‘बहन या भी कोई बात हुई’ रामकरण के संस्कारों ने विरोध किया।

‘रख ले, मैं तेरी बड़ी बहन सूं, इसमें तेरी भी इज्जत और मेरी भी’ सुनीता ने उसकी ओर बढ़ते भाई के हाथ को मोड़ दिया।

रामकरण को लगा, आज फिर एक कृष्ण नरसी का भात भरण ने सामने खड़ा सै।


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