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मूछोंवाली

मधुकान्त

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

34

बोध


पुष्पा, जो रात देर से समाप्त हुए फंक्शन से लौट रही थी कि सूनी राह में उसके कॉलेज के चार गुण्डों ने मिलकर उस इकलौती नारी का रेप कर दिया।

मन हुआ था तालाब में डूबकर जान दे दे पर वह पानी को छूकर ही लौट आई थी।

घर के सामने चिंतामग्न खड़े पिता उस पर बरस पड़े। वह सीधी अपने कमरे में जाकर फूट पड़ी। उसके जीर्ण-जीर्ण कपड़ों और नुचे हुए गालों से माँ ने ही अनुमान लगाया।

कुछ देर बाद पिताजी को भी मालूम पड़ गया। कभी वे अपने आप पर झुंझलाते तो कभी लड़की को देर से लौटने पर कोसते।

‘नीरू भाई को साथ ले जाकर पुलिस में रपट क्यों नहीं लिखवाते’ पत्नी ने सुझाया।

‘तू तो है पगली। रपट लिखवा दी तो लड़की को बार-बार थाना ले जाना पड़ेगा। थाने वालों को तो तुम जानती ही हो। कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पड़ेंगे। सारी इज्जत धूल में मिल जाएगी। फिर कौन शादी करेगा इसके साथ’ कहते हुए पिता ने अपना सिर धुन लिया।

माँ का स्वर मंद पड़ गया।

कमरे में पड़ी पुष्पा इस बात से अधिक आहत हुई। उसे लगा जैसे पिता जी भी इस साजिश में शामिल हैं।

बिना अंधेरे की परवाह किए वह तेजी से उठी और पिछला दरवाजा लांघकर थाने की ओर निकल पड़ी।


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