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कहानी संग्रह >> मूछोंवाली

मूछोंवाली

मधुकान्त

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

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कोठेवाली


‘ऐ बाई एक दिन मेरा भी नम्बर लगा दो ना’ रलूआ दूधवाले ने दोनों हाथ जोड़ दिए।

‘पैइसा है अंटी में?’ बाई ने आंखें तरेरी।

‘जैसे-तैसे पांच सौ रूपया जोड़ी है।’

‘बस, पांच सौ, मालूम... एक हजार वाले ग्राहक पैंडिग में है। डबल शिफट चलावत फिर भी काम पूरा नहीं... बोलो क्या करें?’ बाई ने नखरे से इठलाते हुए कहा-’हमको क्या मालूम था लड़कियों का ऐसा अकाल ही पड़ जाएगा...।’

‘सबको लड़का चाहिए था इसलिए लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया, फिर बताओ कहां से आएगीं बन्नो अब हमारी छाती पीटो।’ बाई तनिक तैश में आ गयी।

‘यही बात सच है बाई जी।’ रलुआ लज्जित सा हो गया।

‘हमारी नानी कहती थी, पूरे-पूरे दिन कोठे पर बैठे ग्राहक के इन्तजार में सूखते रहते मिलता भी क्या था पचास-सौ रुपया।’ बस...बाई ने पान का बीड़ा मुंह में ढूंस लिया।

‘बाई तीन वर्ष से हम तुमको दूधपिलावत रहे।’ रलुआ ने फिर अनुनय किया।

‘देखती हूं, किसी दिन कोई अडवांस बुकिंग वाला ग्राहक नहीं आया तो तुम्हें बुला लूंगी।’

‘ठीक है बाई, चलेगा’ रलूआ ने आध डल्लू दूध और उडेल दिया।

अगले दिन रलूआ दूध देने आया तो अपने कपड़ों पर इत्तर छिड़के था।


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