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मूछोंवाली

मधुकान्त

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

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बहु नदारद

कॉलेज के कुछ लड़के रेशमा को तंग करने लगे तो एक अपंग भिखारी बीच में आ गया। लड़के भाग जाने के बाद रेशमा भी धन्यवाद करके चली गयी। उस दिन के बाद रेशमा प्रतिदिन उसको एक रुपया भीख में देने लगी। जैसे ही रेशमा आती हुई दिखायी देती और उसकी आंखों से ओझल हो जाने तक भिक्षुक उसे एकटक देखता रहता।

धीरे-धीरे वह सपने बुनने लगा... घर... घरवाली... डबल भीख... बच्चे... परिवार... सुख... साधन... तभी कॉलेज से लड़के-लड़कियों का जलूस निकला। उनके हाथों में बैनर और पट्टियां थी और वे नारे लगा रहे थें- कन्या को मरवाओगे तो बहू कहां से लाओगे।

‘जब इन सम्पूर्ण लोगों के लिए लड़की नहीं है तो मुझ अपंग को कैसे मिलेगी।’ वह सपने से निकलकर अपने भिक्षापात्र की ओर देखने लगा।


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