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मूछोंवाली

मधुकान्त

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

58

जिंदा वे


अचानक उनको ख्याल आया, कई दिनों से दो आवारा लड़के बाइक पर उनका पीछा कर रहे हैं। कभी उन्होंने मुंह मोड़ लिया, कभी वो रास्ता छोड़ दिया। धीरे-धीरे वे उनपर फब्तियां कसने, सीटी बजाने और अश्लील हरकतें करने लगे। वे बर्दाश्त करती रही। एक दिन तो हद हो गयी वे शबीना के गले का टुपट्टा खेंचकर ले गए।

कई दिनों तक दोनों कॉलेज नहीं गयी। वे दोनों उनके घर के चक्कर लगाने लगे तंग आकर मीना शबीना के घर गयी-’शबीना इन आवारा लड़कों ने तो जीना दुश्वार कर दिया।’ उसकी आंखें भर आयी।

‘अब्बूजान को बता दे...?’

‘अब्बू तो पहले ही बीमार रहते हैं, एक चिंता और लग जाएगी।’

‘तो पुलिस में रिपोर्ट कर दें?’

‘पगली, इन्होंने ही तो उनको पाल रखा है। बदमाशों का तो कुछ नहीं करेंगे, हमारी तथा हमारे घरवालों की मुश्किल और बढ़ जाएगी।’

‘तो फिर दोनों जहर खा लेते हैं। सारा झंझट ही मिट जाएगा। ऐसी जिल्लत की जिंदगी जीने से तो मर जाना बेहतर है।’ कहते हुए मीना के होंठ कांपने लगे।

शबीना सोच में पड़ गयी। अचानक वह उत्साह से भर उठी-’मीना यदि मरना ही है तो क्यों न लड़कर मरें। अपराध तो वो करे और मरें हम...।’

‘ये तो एकदम ठीक है, तो चले कॉलेज।’ मीना में भी जोश आ गया।

चारों कदमों में नया उत्साह भर उठा और उसी दिन से वे जिंदा हो गयी।


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