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मूछोंवाली

मधुकान्त

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

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अपने लिए


अपने आपको ऋण-मुक्त करने के लिए एक बूढ़े पिता ने अपनी जवान बेटी को बूढ़े-खूसट के गले मढ़ दिया।

बेचारी प्रतिदिन अपने पुराने ढोल को पीटती लेकिन एक भी रसीली धुन उसमें से न निकलती।

ज्यों-ज्यों रात गहराती, न जाने कहां से वह हाथ में गजरा लिए लड़खड़ाता लौटता- दो चार पोपली बातें करता... और ढेर हो जाता।

बस इतने भर के लिए बेचारी को सायं के प्रथम पहर से ही सजना-संवरना आरम्भ कर देना पड़ता था। एक-एक सुंदर गहनों से ललचाकर लाद दिया था खूसट ने। वह सोने-सी चमकने लगी थी... लेकिन निर्जीव बुझी-बुझी सी।

सायं के हल्के-हल्के धुंधलके में आज उसने बराबर वाले कमरे

में मीरा और केशव को बाहुपाश में बंधे देखा... कुछ क्षण के लिए

उसकी आंखे फटी रह गयी।

अपने कमरे में लौटी तो वह लगभग पागल-सी हो गयी थी। उसने

सारा श्रृंगार का सामान और गहने कूड़े के कनस्तर में फेंक दिए।

दूर से आता पोप म्यूजिक उसे लुभाने लगा और वह बिस्तर पर

गिरकर तकिए को अपनी बांहों में समेंटने लगी।


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