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मूछोंवाली

मधुकान्त

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

84

आभूषणों में कैद


अपनी पत्नी को खुश करने के लिए अभि बहुमूल्य और सुंदर आभूषण खरीद लाया। रात को उसने आशु के सामने आभूषणों का डब्बा खोला तो वह हल्के से मुस्करा दी। इस हल्की मुस्कान से अभि संतुष्ट नहीं हुआ- ‘क्यों पंसद नहीं आए क्या?’ डब्बे से निकालकर वह आशु को अपने हाथों से आभूषण पहनाने लगा।

‘ये देखो बाजू बंद... ये देखो गलबंद... जरा शीशे में देखकर बताओं कैसे लगे?’

अभि ने पत्नी को खुश करने में सारी ताकत लगा दी।

‘हाथों में हथकड़ी और गले में फांसी का फंदा पहनकर कैदी बनने से क्या लाभ। एक तो इन धातुओं का भार उठाओ दूसरी इनकी सुरक्षा की चिंता में घुलते रहो...।’

‘परन्तु सुंदर तो लगोगी...।’

‘ना बाबा ना, मुझे सुंदर और कमसिन नहीं बनना.. शक्तिशाली बनकर अपने पांवों पर खड़ा होना है।’

गहनों को उतारकर डब्बे में बंद करते हुए आशु का चेहरा उत्साह से चमक रहा था।        


।। समाप्त ।।

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