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मूछोंवाली

मधुकान्त

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से दो दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 40 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

6

आम बजट


धूप आग उगल रही थी। लाइनों के बीच में कोयला चुगते हुए उसके हाथ पसीना पोछकर चेहरे को मटमैला बना रहे थे।

दूर छतरी लगी ट्राली में साहब लोग बैठे लाइनों को चौंक कर रहे थे। रामू उनके लिए पानी लेने आया तो अपने खुले बालों को पीछे धकेलते हुए छमिया ने पूछा- ‘बाबू की के रहे थे रे रमुआ...?’

‘अपनी बात कर रहे थे...’

‘की...?’

‘सरकार के बजट मा कई करोड़ रुपया का घाटा हैगा।’

‘करोड़ रुपया... किना होवे रे रमुआ...?’

‘बोरी भरवा...’

‘बाबू लोग तनखाह देत... उसतो भी बेसी’ आश्चर्य से उसके हाथ फैल गए।

‘बेकार बातों में टाइम ना खपा- जल्दी-जल्दी कोयला बटोर... अपन को बजट-बजट से की, ये सब साब लोगों के लिए है।’

छमिया के हाथ तेजी से बुझी राख में कोयला खोजने लगे, लेकिन उसका दिमाग अभी भी करोड़ रुपयों को तोल रहा था।


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