जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
अक्टूबर
सन् 1931 में लंदन में दूसरे गोलमेज बैठक में गांधी जी ने भी भाग लिया था।
विलायत से लौटने के बाद गांधी जी को अकारण ही जेल में बंद कर दिया गया।
रवीन्द्रनाथ ने उसका लिखित विरोध जताया। भूटान सीमा पर बक्सर जिले के
राजबंदियों ने रवीन्द्र जयंती मनाकर कवि को अभिनंदन पत्र भेजा, इस घटना ने
उनके दिल को छू लिया। इस पर उन्होंने एक कविता भी लिखी।
सिर्फ इतना
ही नहीं, हिजली हत्याकांड के बाद दु:ख और दर्द से भरकर तीखा विरोध जताते
हुए उन्होंने लिखा ''भगवान, तुमने हर युग में, इस दयाहीन दुनिया में, भेजा
है हर बार अपना दूत।''
कवि का सत्तरवां जन्मदिन
बड़े धूमधाम से
मनाया गया। टाउनहाल में रवीन्द्रनाथ के चित्रों की नुमाइश के उद्घाटन से
जयंती का आयोजन शुरू हुआ। कवि के सम्मान में शरतचंद्र द्वारा लिखे मान
पत्र में देश की जनता की ओर से कहा गया था-''कवि गुरू, हम जब भी आपको
देखते हैं, बेहद चकित होते हैं।'' रामनंद चट्टोपाध्याय ने ''द गोल्डन बुक
आफ टैगोर'' नामक अभिनंदन ग्रंथ तथा रवीन्द्र परिचय सभा के प्रतिनिधि के
रूप में ''क्षितिमोहन सेन ने ''जयंती उत्सर्ग'' नामक पुस्तक रवीन्द्रनाथ
को भेंट की। उसके दूसरे दिन 31 दिसम्बर को विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में
कलकत्ता के छात्रों द्वारा रवीन्द्रनाथ को सम्मानित किया गया। जोड़ासांको
ठाकुरबाड़ी में इस मौके पर ''शापमोचन'' (शाप मुक्ति) नाटक का मंचन हुआ।
उनके बनाए चित्रों की एक नुमाइश भी हुई। यूरोप और अमरीका के बाद वह नाटक
कलकत्ता में पहली बार खेला गया।
सात
खड़दह में कुछ दिन आराम करने के बाद उन्हें फिर विदेश से बुलावा आया। ईरान के बादशाह रजा शाह पहलवी ने उन्हें अपने देश में आने का आग्रह किया था। वे हवाई जहाज से ईरान रवाना हुए। पहले बसरा गए। वहां से मोटर से सिराज, जहां नामी शायर हाफिज और शेख सादी रहते थे। वहां सात दिन रहने के बाद इस्पाहान गए। बीच में प्राचीन राजधानी पारस या पर्सिपोलिस में रूके। वहां से वे आज की राजधानी तेहरान पहुंचे। वहां बादशाह से उनकी भेंट हुई। तेहरान में पचीस बैसाख को उनका जन्मदिन बड़े जोर-शोर से मनाया गया।
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