जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
भारत में असहयोग आंदोलन
को लेकर काफी उत्तेजना थी। रवीन्द्रनाथ भारत लौटे। उन्होंने पाया कि
शांतिनिकेतन भी असहयोग आंदोलन की जबर्दस्त लपेट में था। रवीन्द्रनाथ जब
शांतिनिकेतन से बाहर थे, तब गांधी जी वहां आकर उनके बड़े भाई
द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर के साथ विचार-विनिमय करते थे। गांधी जी से सलाह लेने
प्रसिद्ध अली भाइयों में से एक शौकत अली भी आए थे। उन्हीं दिनों स्वामी
श्रद्धानन्द भी वहां गए थे। लेकिन रवीन्द्र नाथ हमेशा की तरह ही उस वक्त
भा यही कह रहे थे कि शांतिनिकेतन को राजनीति का अखाड़ा न बनाया जाए।
हालांकि रवीन्द्रनाथ जब भारत से बाहर थे तब शांतिनिकेतन में बड़ी संख्या
में लोगों ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया था। इस आंदोलन के सबसे उत्साही
समर्थक खुद कवि के बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर थे। रवीन्द्रनाथ ने स्कूल
और कालेज के बॉयकाट का समर्थन नहीं किया। भारत लौटकर उन्होंने यूनिवर्सिटी
इंस्टीट्यूट हाल में एक लेख पढ़ा। उसका विषय था ''शिक्षा का मिलन'' उनकी
राय में यूरोप को विजय शिक्षा के बल पर ही मिली थी। शिक्षा को गालियां
देते रहने में दु:ख तो कम नहीं होगा, बल्कि ऐसा करने से अपराध ही बढ़ेगा।
वे
इतने से ही शांत नहीं बैठे। कुछ दिन बाद उन्होंने एक और लेख लिखा। उसका
नाम था ''सत्य की पुकार''। उस लेख में गांधी जी के महत्व को मानने के
बावजूद उनके विचारों और उनकी दिशा से रवीन्द्रनाथ ने अपनी असहमति जताई।
बंगाल के लोगों को रवीन्द्रनाथ की इन बातों में कोई दम नजर नहीं आया। कुछ
दिनों के बाद गांधी जी को कलकत्ता आने पर, जोड़ासांको वाले घर में,
रवीन्द्रनाथ से उनकी अकेले में करीब चार घंटे तक बात हुई। उनके साथ सी.
एफ. एंड्रूज भी थे। मगर उन दोनों के बीच उस दिन क्या बातें हुईं इसके बारे
में कभी कुछ पता नहीं चला।
राजनीतिक खींचतान से उब
कर
रवीन्द्रनाथ ने अब अपना सारा ध्यान कविता लिखने में लगाया। ''शिशु
भोलानाथ'' उसी समय की लिखी कविता है। उस समय आचार्य ब्रजेन्द्रनाथ शील ने
विश्वभारती की स्थापना और उसका संविधान बनाने में मुख्य भूमिका निभाई।
फ्रांस से सिलवां लेवी अतिथि अध्यापक होकर आए। उन्हीं से विश्वभारती
विद्या भवन का काम शुरू हुआ। उधर पूरे देश में आंदोलन जोर पकड़ रहा था।
गांधी जी ने गुजरात के बारदौला में सरकार को कर न देने का आंदोलन चलाया।
वह आंदोलन सफल नहीं हुआ। रवीन्द्रनाथ ने गुजराती के एक प्रसिद्ध लेखक को
भेजी चिट्ठी में लिखा-''अहिंसा की विचारधारा को इस प्रकार राजनीति में
प्रयोग करने के खतरे अनेक हैं। लोगों को इसके लिए पूरी तौर से तैयार न
करके ऐसे आंदोलन में झोंक देना ठीक वैसा ही है, जिस तरह बिना सैनिक शिक्षा
के किसी को मोर्चे पर भेज दिया जाए।''
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