जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
बलिन
में भी रवीन्द्रनाथ के चित्रों की नुमाइश हुई। इसका इंतजाम विदुषी जर्मन
महिला डा. आना जेलिग ने किया। वे रवीन्द्रनाथ के कहने पर कुछ दिनों के लिए
शांतिनिकेतन भी आई थीं। बर्लिन से वे म्यूनिख गए। वहां के नजदीक ही
ओबेरामारगाड नामक जगह में, ईसा मसीह के जीवन पर आधारित नाटक, ''पैशन
प्ले'' ने कवि को प्रभावित किया। इसे लेकर उन्होंने अग्रेजी में एक लम्बी
कविता लिखी- ''द चाइल्ड''। मूल रूप से अंग्रेजी में रवीन्द्रनाथ ने यही
अकेली कविता लिखी थी। बाद में उन्होंने बांग्ला में ''शिशुतीर्थ'' के नाम
से इसका अनुवाद किया। ''पैशन प्ले'' का आयोजन हर दस साल बाद होता है। जिस
व्यक्ति को इसके लिए चुना जाता है उसे दस साल तक बड़ा पवित्र जीवन बिताना
पड़ता है। तभी उसे ईसा मसीह की भूमिका निभाने लायक समझा जाता है।
म्यूनिख
से बर्लिन होते हुए रवीन्द्रनाथ डेनमार्क के एल्सिनोर शहर पहुंचे। वहां
अपना भापण देकर कोपेनहेगन चले गए, वहां से बर्लिन। फिर जेनेवा। जेनेवा में
रहने के दौरान उन्हें सोवियत रूस जाने का निमंत्रण मिला। उसके पीछे
आइंस्टाइन का हाथ था। तीन-चार साल पहले मास्को जाने की बात हुई थी। मगर तब
संभव नहीं हुआ था।
इस बार उस सफर में उनकी
साथी थी, आइंस्टाइन की
बेटी माग्रेट, डा. अमिय चक्रवर्ती, डा. हेरी टिम्बर्स और आर्यनायकम।
बर्लिन से रेलगाड़ी से वे मास्को पहुंचे।
मास्को शहर में कवि की
अगुवानी प्रोफेसर पेट्रोफ ने की। मास्को के लेखकों ने रवीन्द्रनाथ के लिए
एक कन्सर्ट आयोजित किया। सोवियत कला अकादमी के सभापति प्रोफेसर कोगन,
अध्यक्ष पिनकेविच, मदाम लिंगविनोव फेरा इन्वार, फेदर ग्लादकोव आदि लेखकों
और लेखिकाओं से रवीन्द्रनाथ का परिचय हुआ। इसके बाद पायनियर कम्यून में
वहां के किशोर-किशोरियों से रवीन्द्रनाथ की मुलाकात हुई। वे एक दिन
किसानों से भी मिलने गए। विभिन्न विषयों में उनकी रुचि को देखकर कवि बहुत
खुश हुए। उन्होंने बाद में लिखा था ''अगर मैं रूस न गया होता तो मेरी इस
जन्म की तीर्थयात्रा अधूरी रहती।''
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