जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
उसी समय लंदन में भारत और
ब्रिटेन के संबंधों को लेकर गोलमेज बैठक हुई। रवीन्द्रनाथ ने ''स्पेक्टर''
के एक लेख में गांधी जी से निवेदन किया कि वे इस बैठक में जरूर भाग लें।
हिन्दू और मुसलमान नेताओं का आपसी विरोध खत्म होने की कोई सूरत नजर नहीं आ
रही थी। कुछ नेताओं ने रवीन्द्रनाथ से उनके बीच सुलह कराने का अनुरोध
किया। लेकिन रवीन्द्रनाथ ने काफी सोच विचारकर तथा उनसे बातें करके यह
महसूस किया कि यह काम उनका नहीं है।
यूरोप और अमरीका का सफर
खत्म
करके भारत वापस लौटकर रवीन्द्रनाथ सोवियत रूस के कदमों पर चलकर सामुदायिक
भंडारों के जरिए संघबद्ध जीवन की बात सोचने लगे। लेकिन किसी ने भी इसमें
अपनी रुचि नहीं दिखाई। आखिरकार अपना इरादा बदलकर वे गीत लिखने में जुट गए।
उन गीतों को लेकर उन्होंने ''नवीन'' नाम से एक लोक नाटक लिखा। रवीन्द्रनाथ
के सत्तर साल पूरे हो जाने पर उनका धूमधाम से जन्मदिन मनाया गया। उसमें
कवि ने कहा, ''मेरा सिर्फ एक ही परिचय है, कि मैं और कुछ नहीं, बस एक कवि
हूं। मैं दर्शन का जानकार कोई बहुत बड़ा पंडित, गुरू या नेता नहीं हूं, मैं
तो विचित्र का दूत हूं।''
रवीन्द्रनाथ घूमने के लिए
दार्जिलिंग
गए। पूरा देश उस समय उथल-पुथल से गुजर रहा था। हिन्दू-मुसलमानों में विरोध
ठना हुआ था। कवि ने उन दिनों ''हिन्दू-मुसलमान'' नामक लेख में लिखा-''जिस
देश में एकमात्र धर्मों का मेल ही अगर लोगों को करीब लाता हो, किसी और
बंधन से लोगों के दिल न मिल पाते हो, तो वह देश अभागा नहीं तो और क्या है।
जो देश खुद ही धर्म के जरिए अपनों में दरार डालने का काम करे, इससे ज्यादा
खतरनाक, बात और क्या हो सकती है।''
शांतिनिकेतन लौटकर
विश्वभारती
के लिए धन के जुगाड़ में रवीन्द्रनाथ भोपाल के राजदरबार में पहुंचे। वहां
उनकी आवभगत तो खूब हुई, पर धन नहीं मिला। वापस लौटकर एक बुरी खबर पाकर
रवीन्द्रनाथ विचलित हो गए। मेदिनीपुर के हिजली जेल में राजनैतिक बंदियों
पर संतरियों ने गोली चलाकर दो लोगों की हत्या कर दी थी। कलकत्ता की एक
जनसभा में रवीन्द्रनाथ ने इस घटना की बेहद निंदा की।
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