लोगों की राय

व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843
आईएसबीएन :9781613012789

Like this Hindi book 0

मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है



वेशभूषा की शालीनता


हर देश की अपनी एक प्रचलित वेशभूषा होती है, जो वहाँ की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित होती है। हमारे देश की भी अपनी प्रचलित वेशभूषा है। परिधान विशेष पर न जाएँ, तो सामान्य तौर पर हमारे देश में पहने जाने वाले वस्त्र सादा व ढीले-ढाले होते थे। धोती, कुरता, साड़ी, लहँगा आदि ऐसे ही परिधान हैं, जो हमारे देश में प्रयुक्त किए जाते रहे हैं और किए जा रहे हैं।

भारतीय संस्कृति की सर्वोपरि विशेषता यही रही है कि यहाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सादगी को ही अधिक महत्त्व दिया गया है। यह विशेषता वस्त्राभूषण के साथ भी जुड़ी हुई है। पिछले दिनों हमें जो यवनों और अंग्रेजों की दासता भुगतनी पड़ी, उससे हमारे संपूर्ण आचार-विचार ही परिवर्तित हो गए हैं। यह परिवर्तन खान- पान, रहन-सहन, बोल-चाल आदि सभी में समा गया है। वस्त्र भी आज हमारी सांस्कृतिक विशेषता, गौरव, जलवायु आदि के अनुरूप नहीं है। किसी भी अवस्था में देशकाल की परिस्थितियों के प्रतिकूल वस्त्र नुकसानदेह ही हो सकते हैं।

वस्त्र पहनने से कोई आधुनिक और परंपरावादी नहीं हो जाता है। वस्त्र सादे हों, स्वच्छ हों, शालीन हों, जिन्हें देखकर किसी के मन में किसी प्रकार की दुर्भावना उत्पन्न न हो, ढीले-ढाले हों पसीना सूखता रहे, जिससे कि सीलन से होने वाले चर्म रोग जैसे दाद, खाज, खुजली न हों। यह ध्यान में रखने की बात है कि कपड़ा जितना तंग होगा, उतना ही जल्दी फटेगा। आर्थिक हानि के साथ-साथ स्वास्थ्य की हानि भी कम नहीं, क्योंकि तंग कपड़ा रक्त प्रवाह में अवरोध पैदा करता है। सूती कपड़े स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book