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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843
आईएसबीएन :9781613012789

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है


गाँधी जी ने रेल में सफर कर रही एक स्त्री से कहा-  'बहन! अच्छे कपड़े नहीं पहन सकतीं तो कम-से-कम इन्हें साफ तो कर लिया करो।'' स्त्री बोली- 'क्या करूँ बापू! धोती एक ही है। इसी को आधी धोकर निचोड़ लेती हूँ फिर स्नान करके आधी सुखा लेती हूँ। आप बताइए इसे धोऊँ कैसे?'' गाँधी जी की आँखों में आंसू आ गए। वे बोले- ''जिस देश में इतनी निर्धनता हो, वहाँ फैशन-परस्ती नहीं चल सकती।'' यह कहकर उन्होंने आधी धोती पहनकर कंबल ओढ़ने की प्रतिज्ञा की और मरते दम तक उसी सरलता से जीवन बिताया।

यह मानना भूल है कि जितनी शान-शौकत का प्रदर्शन करेंगे, जितने ठाठ-बाट से रहेंगे और अपनी आवश्यकताओं को जितना अधिक बढ़ा लेंगे, लोग हमें उतना ही सुखी समझेंगे। लोग भले ही समझने लगें कि आप सुखी हैं, पर इन व्यर्थ की आवश्यकताओं को बढ़ा लेने से जो आर्थिक परेशानियाँ खड़ी हो जाती हैं, वे हमें बड़ी बुरी तरह दुःखी और संत्रस्त करके रख देती हैं। ये कृत्रिम आवश्यकताएँ ऐसा दुर्गुण हैं, जिससे मनुष्य अपने पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारता है। इससे आर्थिक कठिनाइयाँ तो आती ही हैं साथ ही व्यक्तिगत और परिवार की उन्नति में भी बाधा पड़ती है। फैशन के व्यसन से आज सभी ग्रस्त हैं। फैशन बढ़ाने के कारण न केवल अपव्यय हो रहा है, बल्कि अंग-प्रदर्शन फैशन का अंग बन गया है और हमारे नैतिक मूल्यों पर इसका बड़ा गहरा असर पड़ रहा है। परिवार में झगड़े, कटुता आदि बुराइयों इस धन के लालच और लालसा के कारण पनपती जा रही हैं। विद्यार्थी वर्ग इससे अछूता नहीं बचा है, बल्कि उनमें फैशन और दिखावे की लालसा बड़ी विकृत होती जा रही है। माँ-बाप जो अपने बच्चों के लिए फैशन की प्रूर्ति नहीं कर सकते, उनकी बुरी आदतों की पूर्ति के लिए पैसा नहीं दे सकते, वे बच्चों की निगाह में गिरे हुए हैं या फिर आर्थिक संकट उठा रहे हैं।

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