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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9848
आईएसबीएन :9781613012772

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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।


गलतियों पर स्वयं को दंडित करें


गलतियाँ मनुष्यों से ही होती हैं। बच्चे-बूढ़े, छोटे-बडे सभी जीवन में समय-समय पर गलतियाँ करते रहते हैं। दूसरों की गलतियों पर हम बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं और उन्हें दंड देने को तत्पर रहते हैं। पर स्वयं अपनी गलतियों पर परदा डालते हैं। कहीं कोई हमें दंडित न कर दे, इसके लिए बचने के हर संभव प्रयास करते हैं इसमें सफल भी हो जाते हैं। यही कारण है कि हम बारबार गलतियाँ करते रहते हैं और उनके आदी भी हो जाते हैं।

हमें स्वयं को अपनी गलतियों पर दंडित करने का स्वभाव विकसित करना चाहिए। कोई दूसरा हमें दंड दे डससे पहले ही स्वयं अपने कान खींचे, गाल पर थप्पड़ लगाएँ और अपने को डाटें कि अजब मूर्ख हो जो ऐसी गलती करते हो। यदि अपराध अधिक गंभीर हो तो स्वयं अपने को एक समय या पूरे दिन भूखा रहने का दंड दें। इसी प्रकार हम स्वयं ही न्यायाधीश के समान अपनी गलती की गंभीरता को देखते हुए दंड निर्धारित कर लें और कठोरता से उसका पालन करें। इसे प्रायश्चित भी कहते हैं। इससे एक ओर तो परिवार व समाज में हमारा मान बढ़ता है वहीं दूसरी ओर आत्मसंतोष होता है, अपराध बोध से मुक्ति मिलती है और परमात्मा के दण्ड से छुटकारा भी होता है।

वर्तमान चुनौतियों में युवाओं से एकाकी साहस की अपेक्षा संसार की चुनौतियों का सामना करने को तुम्हें अकेले ही आगे बढ़ना होगा। संभव है कि आगे चलकर और लोग भी सहयोग करने को आ जाएँ पर उसके लिए प्रतीक्षा करने में समय नष्ट करना बुद्धिमानी नहीं है। अपने पौरुष, अपने साहस और अपने विवेक पर भरोसा रखो, तथा परमात्मा की कृपा पर अटूट विश्वास भी। सत्य के लिए धर्म के लिए न्याय के लिए एकाकी आगे बढ़ने को सदैव तैयार रहो।

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